जब अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी छोड़ने वाले थे और आडवाणी से हुए थे मतभेद एक अनसुना किस्सा
News India Live, Digital Desk : हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति के दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आज भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. लेकिन उनके राजनीतिक सफर में कुछ ऐसे पल भी आए थे, जिनके बारे में ज़्यादा लोग नहीं जानते. एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है, जिससे पता चलता है कि अटल बिहारी वाजपेयी एक समय बीजेपी छोड़ने और अपनी नई पार्टी बनाने का मन बना चुके थे. उनके इस इरादे के पीछे, लालकृष्ण आडवाणी से उनके कथित मतभेद थे.
ये बातें 'इंडिया टीवी' के अध्यक्ष और मुख्य संपादक रजत शर्मा की किताब "नरेन्द्र मोदी: द मैन, द टाइम्स, द प्राइम मिनिस्टर" में लिखी गई हैं. इस किताब के मुताबिक, अटल जी और आडवाणी जी, जो जनसंघ के समय से ही साथ काम कर रहे थे, उनके रिश्ते में कड़वाहट आ गई थी. इसका एक बड़ा कारण यह था कि 1989 के बाद जब बीजेपी ने रामजन्मभूमि आंदोलन पर ज़्यादा ध्यान देना शुरू किया, तो लालकृष्ण आडवाणी पार्टी का चेहरा बनकर उभरे. आडवाणी की रथ यात्रा और अयोध्या आंदोलन को मिले भारी समर्थन ने बीजेपी की राजनीति को एक नया मोड़ दिया.
यह वो दौर था जब आडवाणी का कद पार्टी में लगातार बढ़ता जा रहा था और वाजपेयी, जिन्हें अक्सर एक उदारवादी और समावेशी नेता के तौर पर देखा जाता था, कुछ हद तक खुद को हाशिए पर महसूस करने लगे थे. राजनीतिक हलकों में यह महसूस किया जाने लगा था कि वाजपेयी, जिनकी पहचान संसद में हमेशा सबको साथ लेकर चलने वाले नेता की थी, अब उस नई विचारधारा में पूरी तरह फिट नहीं बैठ पा रहे हैं, जो राम मंदिर आंदोलन पर केंद्रित थी.
किताब में बताया गया है कि 1990-91 के आस-पास का समय था जब अटल जी ने यह बड़ा फैसला ले लिया था. लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इसमें हस्तक्षेप किया. संघ के एक तत्कालीन सह-सरकार्यवाह, भाउराव देवरस ने वाजपेयी को समझाया-बुझाया और उनसे आग्रह किया कि वे ऐसा कदम न उठाएं. देवरस ने वाजपेयी को यह भी याद दिलाया कि देश को उनके नेतृत्व की कितनी ज़रूरत है और उनके बिना पार्टी को बड़ी क्षति होगी. संघ के इसी हस्तक्षेप के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना फैसला बदला और वे बीजेपी के साथ बने रहे.
इस घटना से साफ होता है कि राजनीति में दिग्गज नेताओं के बीच भी ऐसे मुश्किल हालात पैदा हो सकते हैं. हालांकि, यह भी सच है कि इन मतभेदों के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी को एक मज़बूत आधार दिया और मिलकर पार्टी को बुलंदियों पर पहुंचाया
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