रूर ने खोला राज क्या भारत चाहता था शेख हसीना कभी न लौटें बांग्लादेश? कांग्रेस नेता के बयान से भूचाल
News India Live, Digital Desk : राजनीति और कूटनीति की बिसात पर अक्सर ऐसे बयान आते रहते हैं, जो बड़े गहरे मतलब रखते हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और भारत के संबंधों को लेकर एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सबकी निगाहें अपनी ओर खींच ली हैं. उन्होंने कहा है कि जब शेख हसीना निर्वासन (Exile) में थीं, तब भारत ने उन पर बांग्लादेश लौटने के लिए 'दबाव न डालकर' बिल्कुल सही किया था. यह बयान सिर्फ इतिहास की बात नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति के संदर्भ में कई सवाल खड़े करता है.
क्या है शशि थरूर का ये बयान?
शशि थरूर ने एक किताब विमोचन कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए यह दावा किया है. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी सरकार ने, और बाद में राजीव गांधी सरकार ने, शेख हसीना पर कभी दबाव नहीं डाला कि वे जबरन बांग्लादेश लौटें, जबकि उन्हें डर था कि वहाँ उनके प्रतिद्वंद्वी उनकी हत्या कर सकते हैं. थरूर का मानना है कि यह भारत का एक समझदारी भरा फैसला था, जिसने बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में सीधा हस्तक्षेप करने से परहेज किया और 'प्रिंसिपल ऑफ़ सेल्फ-डिटरमिनेशन' (आत्मनिर्णय का सिद्धांत) का सम्मान किया. उन्होंने कहा कि यह भारतीय विदेश नीति का सबसे गौरवशाली क्षण है.
आखिर इस बयान से क्यों बढ़ सकती है बहस?
- कूटनीतिक नैतिकता: थरूर का तर्क है कि भारत ने किसी भी निर्वासित नेता को अपने देश लौटने के लिए मजबूर न करके कूटनीतिक नैतिकता का एक उच्च स्तर बनाए रखा, भले ही भारत का उन पर प्रभाव हो सकता था.
- 'बड़ा भाई' का सिद्धांत: उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि भारत, एक बड़े क्षेत्रीय शक्ति होने के बावजूद, अपने पड़ोसियों के मामलों में हमेशा 'बड़ा भाई' जैसा व्यवहार नहीं करता, जो अकसर पड़ोसी देशों को पसंद नहीं आता. भारत अपनी ताकत का प्रदर्शन नहीं करता, बल्कि सम्मानजनक व्यवहार रखता है.
थरूर के इस बयान से भारत और बांग्लादेश के ऐतिहासिक और मौजूदा रिश्तों पर एक नई बहस शुरू हो सकती है. यह एक बार फिर दिखाता है कि कैसे इतिहास के पन्ने आज की राजनीति में भी बड़े मायने रखते हैं. उनके बयान पर आने वाले समय में राजनीतिक गलियारों में और चर्चाएँ देखने को मिल सकती हैं.
--Advertisement--