वतन वापसी के बाद तारिक रहमान का पहला बड़ा विज़न क्या 1971 वाला जज़्बा फिर से बांग्लादेश की किस्मत बदलेगा?

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News India Live, Digital Desk : लंबे अरसे के बाद जब कोई नेता अपने देश की मिट्टी पर लौटता है, तो उसके पास न केवल भावनाओं का ज्वार होता है, बल्कि अपने देश के भविष्य के लिए एक ठोस उम्मीद भी होती है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान ने भी अपनी वापसी के बाद कुछ ऐसा ही किया है। उन्होंने न केवल देश की भावी दिशा को लेकर अपना रुख साफ किया, बल्कि 1971 के उन ऐतिहासिक पलों को भी याद किया जिन्होंने इस मुल्क की बुनियाद रखी थी।

1971 और आज का जुड़ाव
तारिक रहमान ने बड़े ही सधे हुए लहजे में 1971 के मुक्ति संग्राम का जिक्र किया। उनका कहना है कि जो जज्बा और लड़ाई उस समय 'स्वतंत्रता' के लिए थी, आज की लड़ाई उसी तरह 'लोकतंत्र और मानवाधिकारों' को बचाने की है। उन्होंने वर्तमान दौर के छात्रों और आम जनता के विरोध प्रदर्शनों को 'दूसरी आज़ादी' का नाम देते हुए यह समझाया कि देश अब किसी एक तानाशाही सोच के साये में नहीं रह सकता। यह भावनात्मक जुड़ाव दरअसल आम लोगों को यह अहसास दिलाने की कोशिश है कि बदलाव का वक्त आ गया है।

नए बांग्लादेश का क्या है विज़न?
सिर्फ यादों से पेट नहीं भरता और न ही देश चलता है, और तारिक रहमान यह बखूबी जानते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका आने वाला समय सत्ता की मलाई चाटने के लिए नहीं, बल्कि संस्थागत सुधारों (Institutional Reforms) के लिए होगा। उनके प्लान के कुछ मुख्य हिस्से इस तरह नजर आते हैं:

  • स्वतंत्र चुनाव: देश में एक ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनाना, जहाँ जनता के वोट की असली कीमत हो।
  • अल्पसंख्यकों की सुरक्षा: बार-बार उठने वाले डर को खत्म कर एक समावेशी समाज की स्थापना करना।
  • आर्थिक सुधार: रोज़गार और महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना, जो इस समय देश की सबसे बड़ी ज़रूरत हैं।

सिर्फ भाषण नहीं, उम्मीद की बात
अक्सर नेता मंच से बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन तारिक रहमान की इस बार की बातों में एक संजीदगी नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि वो पुराने बदले लेने की राजनीति के बजाय एक ऐसी नई शुरुआत चाहते हैं जहाँ हर बांग्लादेशी गर्व से रह सके। उनके अनुसार, देश का संविधान और संस्थाएं इतनी मजबूत होनी चाहिए कि आने वाले वक्त में फिर कभी कोई एक व्यक्ति खुद को कानून से ऊपर न समझने लगे।

चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं
तमाम योजनाएं और 1971 के हवाले अपनी जगह हैं, लेकिन असल परीक्षा अब शुरू होगी। बांग्लादेश की सड़कों पर जिस तरह की हलचल है, उसमें तारिक रहमान और मोहम्मद यूनुस के बीच का तालमेल ही भविष्य की दिशा तय करेगा। क्या वाकई 1971 की भावनाओं को आधार बनाकर एक सुरक्षित और आधुनिक बांग्लादेश बनाया जा सकेगा? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब पूरा दक्षिण एशिया तलाश रहा है।

अंत में, तारिक रहमान की यह बातें सिर्फ एक पार्टी का एजेंडा नहीं, बल्कि संकट से जूझते एक मुल्क के लिए उम्मीद की एक किरण की तरह देखी जा रही हैं।

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