बस्तर में सुरक्षा बलों को मिली बड़ी कामयाबी, 25 लाख के इनामी खूंखार माओवादी चैतू का सरेंडर
News India Live, Digital Desk : छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका अक्सर गोलियों की गूंज और बारूदी धमाकों के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन, पिछले कुछ समय से वहां की हवा बदल रही है। जिस लाल आतंक (Red Terror) ने दशकों से वहां के आदिवासियों और जवानों को डरा कर रखा था, अब उसकी नींव हिलने लगी है।
आज बस्तर से एक ऐसी खबर आई है जिसने माओवादी संगठन की कमर तोड़ कर रख दी है। दशकों से पुलिस को जिसकी तलाश थी, वो खूंखार नक्सली और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZC) का मेंबर 'चैतू' (Chaitu) आखिरकार कानून की शरण में आ गया है।
कौन है ये चैतू? (Who is Chaitu?)
चैतू कोई आम नक्सली नहीं था। पुलिस फाइलों में उसका नाम टॉप लिस्ट में शामिल था। सरकार ने उसके सिर पर 25 लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि संगठन में उसका कद कितना बड़ा होगा और सुरक्षा बलों के लिए वो कितनी बड़ी चुनौती रहा होगा।
नारायणपुर, कांकेर और गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) के इलाकों में उसका सिक्का चलता था। कई बड़ी वारदातों में उसका हाथ होने की बात कही जाती है। लेकिन आज वही खूंखार चेहरा, पुलिस अधिकारियों के सामने हाथ जोड़कर खड़ा था।
क्यों किया सरेंडर? (Reason behind Surrender)
अब सवाल यह उठता है कि जंगल का यह कमांडर अचानक मुख्यधारा में क्यों लौट आया? इसके पीछे दो बड़ी वजहें मानी जा रही हैं:
- बीमारी और बेबसी: खबर है कि चैतू पिछले काफी समय से गंभीर रूप से बीमार था। जंगल में भाग-दौड़ करना अब उसके बस की बात नहीं रही थी। संगठन के बड़े नेता अक्सर छोटे कैडर्स को मरने के लिए छोड़ देते हैं, लेकिन जब खुद पर आती है तो उन्हें असलियत समझ आती है।
- पुलिस का दबाव और पुनर्वास नीति: छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस द्वारा चलाया जा रहा 'माड़ बचाओ अभियान' और 'लोन वर्राटू' (घर वापस आइए) अभियान अब रंग ला रहा है। जंगलों में पुलिस की लगातार गश्त और एनकाउंटर के डर ने नक्सलियों का मनोबल तोड़ दिया है। उन्हें समझ आ गया है कि हिंसा का अंत मौत या जेल है।
माओवादियों के लिए खतरे की घंटी
चैतू का सरेंडर करना नक्सलियों के लिए किसी झटके से कम नहीं है। वह संगठन के कई गहरे राज जानता है। उसकी जानकारी पुलिस के लिए बहुत कीमती साबित हो सकती है, जिससे आने वाले दिनों में और भी बड़े ऑपरेशन किए जा सकते हैं।
बस्तर आईजी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने चैतू का स्वागत किया और भरोसा दिलाया कि उसे सरकार की सरेंडर पॉलिसी का पूरा लाभ मिलेगा, ताकि वो एक सामान्य नागरिक की तरह इज़्ज़त की ज़िंदगी जी सके।
यह घटना उन भटके हुए युवाओं के लिए एक सन्देश है कि "सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते।" बस्तर अब शांति की राह पर लौट रहा है और बंदूकों का शोर धीरे-धीरे थम रहा है।
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