Reverse Migration : फ्लैट की EMI या खेत की ताजी हवा? समझिये क्यों बदल रहा है भारत का ट्रेंड
News India Live, Digital Desk : अगर आपका जवाब 'हाँ' है, तो विश्वास मानिए, आप अकेले नहीं हैं। पिछले कुछ सालों में, और खासकर अब 2025 आते-आते, एक बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इसे एक्सपर्ट्स भले ही 'रिवर्स माइग्रेशन' (Reverse Migration) का नाम दें, लेकिन हम इसे आसान भाषा में 'सुकून की तलाश' कह सकते हैं।
सदियों से रवायत थी कि लोग गांव से शहर आते थे नौकरी के लिए, पैसे के लिए, बेहतर भविष्य के लिए। लेकिन अब गंगा उल्टी बह रही है। दिल्ली, मुंबई, और बैंगलोर जैसे महानगरों से लोग बोरिया-बिस्तर समेट कर वापस अपने गांवों या पहाड़ों की तरफ रुख कर रहे हैं। आखिर क्यों?
1. 'सक्सेस' की परिभाषा बदल गई है
एक समय था जब बड़ी गाड़ी और बड़ा फ्लैट ही सफलता की निशानी थे। लेकिन आज की पीढ़ी (Millennials & Gen Z) समझ गई है कि अगर मानसिक शांति (Mental Peace) नहीं है, तो वो लाखों का पैकेज किसी काम का नहीं। 12-14 घंटे की शिफ्ट, वीकेंड पर भी लैपटॉप पर उंगलियां नचाना और फिर सैलरी का बड़ा हिस्सा किराए में दे देना अब यह सौदा लोगों को घाटे का लग रहा है।
2. ज़हरीली हवा बनाम ताज़ा ऑक्सीजन
शहरों का प्रदूषण (Pollution) अब बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा है। जिन लोगों के छोटे बच्चे हैं या बुजुर्ग मां-बाप हैं, वो शहर की जहरीली हवा से डरने लगे हैं। इसके उलट, गांवों में ताज़ी हवा है, घर का उगाया शुद्ध खाना (Organic Food) है और खुला आसमान है। लोग सेहत को पैसे से ऊपर रखने लगे हैं।
3. अकेलापन जो भीड़ में भी नहीं जाता
शहरों में हम भीड़ के बीच होकर भी अकेले हैं। पड़ोसी को पड़ोसी का नाम नहीं पता। लेकिन गांवों में एक अपनापन (Community Feeling) है। वहां शाम को लोग स्क्रीन पर नहीं, चबूतरे पर मिलते हैं। यह सामाजिक जुड़ाव (Social Connection) इंसान की मानसिक सेहत के लिए किसी दवा से कम नहीं है।
4. डिजिटल क्रांति का कमाल
अब गांव का मतलब पिछड़ापन नहीं रहा। अच्छी इंटरनेट कनेक्टिविटी और 'वर्क फ्रॉम होम' के कल्चर ने इसे आसान बना दिया है। कई लोग अपनी हाई-प्रोफाइल नौकरियां छोड़कर या उन्हें रिमोट मोड (Remote Mode) में डालकर गांव से काम कर रहे हैं। वे खेत के बीच चारपाई पर बैठकर भी कोडिंग कर रहे हैं और सुकून भी पा रहे हैं।
यह एक बड़ा सवाल है...
यह पलायन सिर्फ जगह का बदलाव नहीं, बल्कि सोच का बदलाव है। लोग समझ रहे हैं कि ज़िंदगी भागने के लिए नहीं, जीने के लिए है। अगर आपके मन में भी कभी सब कुछ छोड़कर प्रकृति की गोद में बसने का ख्याल आता है, तो इसे नज़रअंदाज़ मत कीजिये। हो सकता है, यही आपकी रूह की आवाज़ हो।
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