छत्तीसगढ़ सरकार का मास्टरस्ट्रोक सरेंडर करने वाले माओवादियों के केस होंगे वापस, जानिए पूरा प्लान

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News India Live, Digital Desk : जवाब गोली का नहीं, बल्कि पुराने पुलिस केस और जेल जाने का होता है।कई बार ऐसा होता है कि कोई माओवादी हिंसा छोड़ना चाहता है, अपने बीवी-बच्चों के पास वापस जाना चाहता है, लेकिन उसके ऊपर दर्ज दर्जनों मुकदमे उसे ऐसा करने से रोक देते हैं। उसे लगता है कि जंगल से बाहर निकलते ही पूरी जिंदगी कोर्ट की तारीखों और जेल की सलाखों के पीछे बीत जाएगी।

लेकिन अब छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने इस डर को जड़ से खत्म करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है।

कैबिनेट का बड़ा फैसला: केस वापसी की मिली मंजूरी

हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने एक बहुत बड़ी नीति पर मुहर लगाई है। इसके तहत, जिन नक्सलियों ने सरेंडर (आत्मसमर्पण) कर दिया है और जो अब शांति से एक आम नागरिक की तरह जीवन बिताना चाहते हैं, उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों को वापस लिया जाएगा

यह फैसला 'छत्तीसगढ़ नक्सल उन्मूलन नीति' का ही एक हिस्सा है। सरकार का मकसद बिल्कुल साफ है—अगर कोई भटक कर गलत रास्ते पर चला गया था और अब वापस लौटना चाहता है, तो उसे एक और मौका (Second Chance) मिलना चाहिए।

कैसे होगा मुकदमों का निपटारा?

सरकार ने इसके लिए एक पूरा सिस्टम तैयार किया है, ताकि इसका गलत इस्तेमाल न हो:

  1. कमेटी करेगी जांच: ऐसा नहीं है कि सरेंडर करते ही सारे केस खत्म हो जाएंगे। इसके लिए जिला स्तरीय समितियां और राज्य स्तर की कमेटियां बनाई जाएंगी जो हर केस की समीक्षा करेंगी।
  2. चाल-चलन देखा जाएगा: सबसे पहले यह देखा जाएगा कि सरेंडर करने के बाद उस व्यक्ति का व्यवहार कैसा है। क्या उसने वाकई हिंसा छोड़ दी है? क्या वह पुलिस और सुरक्षा बलों की मदद कर रहा है?
  3. केंद्र की मंजूरी: अगर किसी पर केंद्रीय कानूनों के तहत गंभीर केस दर्ज हैं, तो उसे वापस लेने से पहले केंद्र सरकार की भी मंजूरी ली जाएगी।

2026 तक नक्सल मुक्त छत्तीसगढ़ का सपना

आपको बता दें कि सरकार ने मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सल मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है। यह फैसला उसी दिशा में एक 'बड़ा हथियार' साबित हो सकता है।

जब जंगल में छिपे नक्सलियों को यह खबर मिलेगी कि सरकार न सिर्फ सरेंडर करने पर आर्थिक मदद और घर दे रही है, बल्कि पुराने केस भी खत्म कर रही है, तो जाहिर है कि सरेंडर करने वालों की तादाद बढ़ सकती है। यह 'विश्वास' जीतने की एक बड़ी पहल है।

व्यापारियों के लिए भी अच्छी खबर: जन विश्वास विधेयक

इसी बैठक में सरकार ने 'जन विश्वास विधेयक' के ड्राफ्ट को भी मंजूरी दी है। इसका मतलब यह है कि अब छोटे-मोटे अपराधों या तकनीकी गलतियों के लिए व्यापारियों और आम लोगों को जेल नहीं भेजा जाएगा, बल्कि सिर्फ जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाएगा। इससे प्रदेश में 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' (Ease of Doing Business) बढ़ेगा।

कुल मिलाकर, सरकार ने एक हाथ में विकास और दूसरे हाथ में विश्वास लेकर नक्सलवाद को खत्म करने की ठान ली है। अब देखना यह है कि जंगल से कितने 'भटके हुए साथी' इस पुकार को सुनकर वापस लौटते हैं।

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