Health Ministry Report : क्या AQI और फेफड़ों की बीमारी में कोई कनेक्शन नहीं? संसद में मोदी सरकार के जवाब ने सबको चौंका दिया

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News India Live, Digital Desk : Health Ministry Report : आजकल सुबह घर से निकलते ही आंखों में जलन और गले में खराश होना आम बात हो गई है। दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई शहरों में AQI (Air Quality Index) 400-500 के पार है। डॉक्टर चीख-चीख कर कह रहे हैं कि यह जहरीली हवा हमारे फेफड़ों (Lungs) को बर्बाद कर रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संसद में सरकार ने इस मुद्दे पर क्या कहा है?

संसद के शीतकालीन सत्र (Winter Session 2025) के दौरान एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि "उच्च AQI और फेफड़ों की बीमारियों के बीच सीधा संबंध स्थापित करने वाला कोई ठोस डेटा (Concrete Data) उपलब्ध नहीं है।"

यह सुनकर आपको थोड़ी हैरानी हो रही होगी, है न? आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि सरकार ने आखिर ऐसा क्यों कहा और इसका मतलब क्या है।

संसद में क्या पूछा गया था?
दरअसल, लोकसभा में सवाल पूछा गया था कि क्या बढ़ते प्रदूषण और खराब हवा (High AQI) की वजह से लोगों में फेफड़ों की बीमारियां बढ़ रही हैं और क्या इससे जुड़ी मौतों के आंकड़े सरकार के पास हैं?

सरकार ने क्या तर्क दिया?
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री (अनुप्रिया पटेल) ने जवाब दिया कि हवा में प्रदूषण होना सेहत के लिए हानिकारक है, इससे इंकार नहीं है। लेकिन, उन्होंने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई "निर्णायक डेटा" (Conclusive Data) नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ प्रदूषण की वजह से ही फेफड़े खराब हो रहे हैं या मौतें हो रही हैं।

सरकार का तर्क यह है कि फेफड़े खराब होने के कई कारण होते हैं:

  1. खान-पान: व्यक्ति क्या खाता है।
  2. आदतें: क्या वह धूम्रपान (Smoking) करता है?
  3. आनुवंशिक (Genetics): क्या बीमारी परिवार में पहले से है?
  4. कामकाज: वह कैसी जगह काम करता है।
  5. आर्थिक स्थिति और तनाव।

सरकार का कहना है कि स्वास्थ्य एक 'मल्टी-फैक्टर' (Multi-factor) वाली चीज़ है, इसलिए सारी जिम्मेदारी अकेले हवा पर नहीं डाली जा सकती।

डॉक्टरों और आम जनता की राय अलग है
सरकार का जवाब तकनीकी रूप से भले ही 'डेटा' पर आधारित हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
हस्पतालों में जाइए तो डॉक्टर बताते हैं कि जो लोग सिगरेट नहीं पीते, उनके फेफड़े भी स्मोकर्स (Smokers) जैसे काले पड़ रहे हैं। अस्थमा और सीओपीडी (COPD) के मरीज बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी प्रदूषण को 'धीमा जहर' मानता है।

इसका क्या मतलब निकालें?
तकनीकी भाषा में सरकार शायद सही हो कि 'सीधा डेटा' अलग करना मुश्किल है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम लापरवाही बरतें। प्रदूषण एक सच्चाई है और इसका असर हमारे शरीर पर हो रहा है।

आप अपनी सुरक्षा खुद करें
सरकारी फाइलों में डेटा कब आएगा, इसका इंतज़ार मत कीजिये।

  • मास्क पहनें।
  • घर में एयर प्यूरीफायर (अगर संभव हो) या पौधे लगाएं।
  • बाहर की जहरीली हवा से बचें।

क्योंकि डेटा जो भी कहे, सांसें तो आपकी ही हैं!

सरकार के इस जवाब पर आपका क्या सोचना है? क्या यह सच है या जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ना?

 

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