जब विलेन की फीस हीरो से ज्यादा होती थी! प्राण साहब का वो दौर, जब उनके नाम से बिकती थीं फिल्में

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सिनेमा का एक सीधा-साधा नियम होता है - हीरो को सबसे ज्यादा पैसा, सबसे ज्यादा शोहरत और आखिर में हीरोइन भी मिलती है। और विलेन? उसे मिलती है हीरो से मार और दर्शकों की नफरत। लेकिन, हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर में एक 'खलनायक' ऐसा भी था, जिसने इस नियम को तोड़कर अपना एक नया नियम बनाया था। एक ऐसा विलेन, जिसके पोस्टर पर होते ही फिल्में हिट हो जाती थीं और जो अपनी फीस हीरो से भी ज्यादा लेता था!

यह कहानी है सिनेमा के उस 'शैतान' की, जिसका नाम था प्राण

नाम 'प्राण', यानी जिंदगी... लेकिन पर्दे पर वे जिंदगी छीनने का काम करते थे। उनकी बोलती आंखें, उनकी बेरहम मुस्कान और उनका दमदार आवाज में डायलॉग बोलना... उस दौर में प्राण साहब का नाम ही दहशत का दूसरा नाम हुआ करता था।

वो विलेन जो हीरो पर भी भारी था

यह 50, 60 और 70 का दशक था। आज की तरह नहीं, जब विलेन अक्सर हीरो के सामने कमजोर दिखते हैं। उस दौर में, खलनायक कहानी की जान हुआ करते थे, और इस परंपरा के बेताज बादशाह थे प्राण। उनका रुतबा इतना बड़ा था कि फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर हीरो का नाम बाद में पूछते थे, पहले यह पूछते थे - "फिल्म में प्राण हैं या नहीं?"

प्राण साहब का स्टारडम ऐसा था कि वे अक्सर फिल्म के हीरो से भी ज्यादा फीस चार्ज करते थे। जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना!

  • जब राज कपूर से भी ज्यादा पैसा लिया: माना जाता है कि फिल्म 'बॉबी' के लिए प्राण ने राज कपूर से भी ज्यादा फीस ली थी। राज कपूर को एक ऐसे मजबूत एक्टर की जरूरत थी जो फिल्म को अपने कंधों पर उठा सके, और प्राण के सिवा यह कोई नहीं कर सकता था।
  • अमिताभ बच्चन से भी महंगे: यहां तक कि फिल्म 'जंजीर' में, जिसने अमिताभ बच्चन को 'एंग्री यंग मैन' बनाया, उस फिल्म के लिए भी प्राण को अमिताभ से ज्यादा पैसे दिए गए थे।
  • एक फिल्म, 5 से 10 लाख! उस जमाने में जब हीरो कुछ हजार या एक-दो लाख रुपये लेते थे, प्राण एक फिल्म के लिए 5 से 10 लाख रुपये तक चार्ज करते थे, जो एक अविश्वसनीय रकम थी।

प्रोड्यूसर्स खुशी-खुशी उन्हें यह रकम देते थे, क्योंकि वे जानते थे कि प्राण का नाम फिल्म के हिट होने की गारंटी है।

परदे का 'शैतान', असल जिंदगी का 'जेंटलमैन'

परदे पर वे जितने खूंखार और बेरहम दिखते थे, असल जिंदगी में उनकी शख्सियत बिल्कुल उलट थी। वे एक बेहद पढ़े-लिखे, नर्म दिल और उसूलों वाले इंसान थे। वे अपने दोस्तों के लिए जान छिड़कते थे, और राज कपूर जैसे बड़े सितारे उनके सबसे करीबी दोस्तों में से एक थे।

लेकिन उनकी एक्टिंग का असर इतना गहरा था कि सालों तक भारत में लोगों ने अपने बच्चों का नाम 'प्राण' रखना ही छोड़ दिया था। उन्हें डर लगता था कि कहीं उनका बेटा भी बड़ा होकर उन्हीं की तरह न बन जाए।

प्राण साहब सिर्फ एक एक्टर नहीं थे, बल्कि वह एक इंस्टिट्यूशन थे। उन्होंने हिंदी सिनेमा में विलेन के किरदार को वह सम्मान और वह रुतबा दिलाया, जो शायद ही किसी और को मिला हो। वे इस बात का जीता-जागता सबूत थे कि एक महान कलाकार को हीरो या विलेन के तमगे की जरूरत नहीं होती, उसका काम ही उसकी असली पहचान होता है।

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