राष्ट्रपति भवन के फोन की घंटी बजी, पर कन्फ्यूजन ने कर दिया खेल दो राधाकृष्णन की कहानी
News India Live, Digital Desk: अक्सर हम फिल्मों में देखते हैं कि नाम एक होने की वजह से कितनी गलतफहमियां हो जाती हैं, जिसे हम 'Comedy of Errors' कहते हैं। लेकिन जरा सोचिए, अगर ऐसा देश की सबसे बड़ी राजनीति में हो जाए तो? जी हां, शपथ ग्रहण समारोह वाले दिन जब नेताओं के दिलों की धड़कनें तेज होती हैं, तब एक ऐसा वाकया हुआ जिसने सबको हैरान भी किया और बाद में मुस्कुराने पर मजबूर भी। यह किस्सा है दो नेताओं का, जिनका नाम 'राधाकृष्णन' था और कन्फ्यूजन पहुंच गया सीधे राष्ट्रपति भवन तक।
उस फोन कॉल का इंतजार...
हम सभी जानते हैं कि जब भी नई सरकार बनती है या मंत्रिमंडल का विस्तार होता है, तो हर बड़े नेता की नजर अपने फोन पर टिकी होती है। "क्या मुझे कॉल आएगा?" यही सवाल सबके मन में चलता है। राष्ट्रपति भवन या प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से आया एक कॉल किसी भी नेता की किस्मत बदल सकता है।
लेकिन उस दिन कुछ ऐसा हुआ जो शायद किसी ने सोचा भी नहीं था। अधिकारियों को लिस्ट के हिसाब से मंत्री पद की शपथ लेने वालों को फोन करना था। लिस्ट में एक नाम था- राधाकृष्णन।
किसे लगाना था और किसे लग गया?
असल में, बीजेपी और गठबंधन की राजनीति में दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत तक कई कद्दावर नेता हैं। कन्फ्यूजन तब पैदा हुआ जब एक ही नाम के दो प्रमुख चेहरे सामने थे। बताया जाता है कि शपथ ग्रहण की गहमागहमी के बीच, जब संभावित मंत्रियों को फोन जा रहे थे, तो अधिकारियों के लिए यह पहचानना मुश्किल हो गया कि "कौन से वाले राधाकृष्णन?"
एक तरफ थे सीपी राधाकृष्णन (C.P. Radhakrishnan), जो पार्टी के दिग्गज नेता और राज्यपाल जैसी बड़ी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, और दूसरी तरफ दूसरे राधाकृष्णन। जल्दबाजी और प्रेशर वाले माहौल में खबर उड़ी कि फोन शायद "गलत राधाकृष्णन" को कनेक्ट हो गया या फिर दोनों के नामों को लेकर मीडिया और ऑफिस के बीच भारी कन्फ्यूजन हो गया।
फिर क्या हुआ?
जैसे ही यह बात सामने आई, अफरा-तफरी मच गई। सोचिए उस नेता की हालत, जिसे लगा हो कि अब वो मंत्री बनने वाले हैं, और बाद में पता चले कि "अरे! ये कॉल तो दूसरे राधाकृष्णन के लिए था।" हालांकि, राजनीति में ऐसी गलतियों को बहुत जल्दी सुधार लिया जाता है, लेकिन वो कुछ मिनटों का सस्पेंस किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं होता।
बाद में जब यह किस्सा बाहर आया, तो लोगों ने इस पर खूब चटखारे लिए। सोशल मीडिया पर भी चर्चा छिड़ गई कि कैसे एक छोटे से "नेम कन्फ्यूजन" ने दिल्ली के सियासी पारे को बढ़ा दिया था।
बड़े-बड़े शहरों में ऐसी बातें होती रहती हैं
यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि चाहे राष्ट्रपति भवन हो या हमारा आम जीवन, 'Human Error' यानी इंसानी गलती कहीं भी हो सकती है। सिस्टम कितना भी हाई-टेक क्यों न हो, जब नाम एक जैसे हों, तो फोन की घंटी किसी और के घर भी बज सकती है।
वैसे, राजनीति में किस्मत और टाइमिंग का ही खेल होता है। कभी-कभी सही टाइम पर आया 'Wrong Number' भी एक यादगार किस्सा बन जाता है, जिसे सालों तक चाय की चर्चाओं में सुनाया जाता है।
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