रामायण का वो पन्ना जो कम लोग जानते हैं,लंका हनुमान ने नहीं, एक श्राप ने जलाई थी
News India Live, Digital Desk : जब भी हम रामायण की बात करते हैं, तो 'लंका दहन' का दृश्य सबसे रोंगटे खड़े करने वाला होता है। हम सबने यही सुना और देखा है कि रावण के अहंकार ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई और बदले में बजरंगबली ने पूरी सोने की नगरी को जलाकर राख कर दिया। यह सच है, लेकिन पूरा सच नहीं!
पौराणिक कथाओं की गहराई में जाएं तो पता चलता है कि लंका के जलने की कहानी हनुमान जी के जन्म से भी पहले लिखी जा चुकी थी। जी हां, सोने की लंका को जलाने के पीछे एक बहुत बड़ा राज छिपा है जिसका कनेक्शन सीधे भगवान शिव और माता पार्वती से है। आइए, आपको वो दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं।
शुरुआत होती है एक सपने से...
कथाओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती को लगा कि भगवान शिव तो वैरागी हैं, उन्हें पहाड़ों और श्मशान में रहने में कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन एक गृहस्थ होने के नाते उन्हें एक अपना 'घर' चाहिए। माता पार्वती की जिद पर भगवान शिव ने देवशिल्पी विश्वकर्मा को आदेश दिया। विश्वकर्मा जी ने अपनी सारी कला झोंक दी और एक ऐसा महल बनाया जो पूरा सोने का था। वह इतना अद्भुत था कि उसकी चमक से तीनों लोक हैरान थे। यह थी—'सोने की लंका'।
रावण की बुरी नजर और 'गृह-प्रवेश'
जब महल बनकर तैयार हुआ, तो गृह-प्रवेश (Housewarming) की पूजा के लिए सबसे बड़े ज्ञानी और शिव भक्त को बुलाया गया। वो कोई और नहीं, लंकापति रावण ही था (जो उस वक्त राक्षस राजा था)। रावण ने पूरी विधि-विधान से पूजा कराई। लेकिन उस सोने के महल को देखकर रावण का मन डोल गया। उसके अंदर लालच आ गया कि "भोलेनाथ तो भस्म रमाने वाले वैरागी हैं, वो इस सोने के महल में क्या करेंगे? यह महल तो मेरे जैसे राजा के पास होना चाहिए।"
वो दान जिसने सब बदल दिया
पूजा खत्म होने पर जब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर पूछा "मांगो रावण, दक्षिणा में क्या चाहिए?" तो चालाक रावण ने झट से कह दिया— "प्रभु, मुझे दक्षिणा में यह सोने की लंका ही दे दीजिए।"
महादेव तो ठहरे महादानी, उन्होंने मुस्कुराकर कहा "तथास्तु!" और चुपचाप वहां से वापस कैलाश चले गए।
माता पार्वती का क्रोध और वो श्राप
शिव जी के लिए यह आसान था, लेकिन माता पार्वती को यह धोखा बहुत बुरा लगा। अपना सपनो का घर, जिसे उन्होंने इतने प्यार से बनवाया था, उसे रावण छल से मांग ले गया था।
क्रोधित होकर माता पार्वती ने रावण को श्राप दिया"रावण! जिस सोने के महल के मोह में तुमने अपने आराध्य को ठगा है, याद रखना, एक दिन यही महल जलकर राख हो जाएगा और तुम्हारी बर्बादी का गवाह बनेगा।"
फिर क्या हुआ?
कहते हैं कि शब्द कभी मरते नहीं। सालों बाद, भगवान शिव के ही 11वें रुद्र अवतार यानी हनुमान जी लंका पहुंचे। और उन्होंने अपनी पूंछ के जरिये माता पार्वती के उसी श्राप को सच कर दिखाया।
तो तकनीकी रूप से आग हनुमान जी ने लगाई थी, लेकिन वो 'ज्वाला' असल में माता पार्वती के क्रोध की थी जो बरसों से सुलग रही थी।
रामायण हमें सिखाती है कि किसी को धोखा देकर या छल से हड़पी गई चीज कभी भी सुख नहीं देती, अंत में वो राख ही होती हैचाहे वो सोने की लंका ही क्यों न हो
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