Petrol Rate: भारत में अब 8 से 10 रुपये तक बढ़ सकते हैं पेट्रोल डीजल के दाम, जानिए क्यों

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डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। कभी वह अपनी मर्जी से टैरिफ हंटर चलाते हैं, तो कभी आदेश पर आदेश छोड़ते हैं। खुद को दुनिया का बॉस समझने वाले डोनाल्ड ट्रंप राजनेता से ज्यादा बिजनेसमैन बन गए हैं। जो टैरिफ का डंडा उठाकर और दूसरे देशों को झुकाकर अमेरिकी खजाना भरना चाहते हैं। श्रेय लूटने में माहिर डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया में चल रहे युद्धों को खत्म करने के दावे तक कर डाले हैं। उन्होंने रूस को यूक्रेन के साथ 50 दिनों के अंदर युद्ध खत्म करने की धमकी भी दी है। ट्रंप ने अपनी धमकी में साफ कहा है कि अगर रूस 50 दिनों के अंदर युद्ध खत्म नहीं करता है तो उसे भारी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा। साफ है कि ट्रंप की यह धमकी परोक्ष रूप से भारत, ब्राजील और चीन जैसे देशों के लिए है, जो रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदते हैं। 

क्या ट्रंप की धमकी से तेल महंगा हो जाएगा?
रूस सत्ता के खेल में झुकने को तैयार नहीं है। अगर युद्ध की स्थिति बनी रहती है और ट्रंप रूस पर सेकेंडरी टैरिफ लगाते हैं तो तेल की कीमतों में फर्क पड़ सकता है। भारत रूस से सस्ता तेल खरीदता है। वह अपनी जरूरत का 35-40 फीसदी कच्चा तेल रूस से खरीदता है। अगर ट्रंप की धमकी के चलते रूस से तेल का आयात बंद होता है तो भारत को वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। अगर रूस से सस्ते तेल का आयात बंद होता है तो तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है। अगर आपूर्ति में व्यवधान आता है तो वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाएगी और इसका असर पेट्रोल-डीजल की कीमत पर पड़ेगा। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी की मानें तो दुनिया की कुल खपत में रूस की हिस्सेदारी 10 फीसदी है। अगर यह हिस्सेदारी पूरी तरह से हटा दी जाए तो दुनिया को बाकी 90 फीसदी हिस्से से तेल खरीदना पड़ेगा 

 

रूसी तेल पर भारत कितना निर्भर है?
भारत और चीन बड़े पैमाने पर रूस से कच्चा तेल खरीदते हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार, भारत तेल के लिए आयात पर निर्भर है। वह अपनी ज़रूरत का लगभग 88 प्रतिशत तेल आयात करता है। सबसे बड़ी बात यह है कि रूस के कुल तेल निर्यात का 38 प्रतिशत अकेले भारत को आता है। थिंक टैंक चैथम हाउस की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन युद्ध से पहले, 2022 में भारत का रूसी तेल आयात 2 प्रतिशत से भी कम था। युद्ध के बाद, रूस पर प्रतिबंध लगा दिए गए और भारत ने इसका फायदा उठाकर रूस से बेहद सस्ता तेल खरीदा। 

क्या रूस से तेल आयात घटेगा?
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि रूस प्रतिदिन 90 लाख बैरल से ज़्यादा कच्चे तेल के साथ दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। लगभग 97 लाख बैरल की वैश्विक तेल आपूर्ति में रूसी तेल का योगदान लगभग 10 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण यह तेल बाज़ार से गायब हो जाता है, तो साफ़ है कि तेल आपूर्ति में भारी कमी होगी। आपूर्ति में कमी के कारण कच्चे तेल की कीमतें भी बढ़ेंगी। कच्चे तेल की कीमतें 130-140 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जा सकती हैं। 

भारत की वैकल्पिक योजना क्या है?
अगर रूसी तेल पर प्रतिबंध लगता है और यह तेल बाजार में उपलब्ध नहीं होता है, तो जाहिर है कि कीमत बढ़ेगी। भारत को रूस और अमेरिका की जंग में शामिल होने से बचना होगा। सस्ते तेल की होड़ में भारत अमेरिका का साथ देने के बजाय दूसरे देशों के विकल्प तलाशेगा। हरदीप पुरी की मानें तो भारत ने इसके लिए बैकअप प्लान तैयार कर लिया है। उन्होंने कहा कि भारत पहले जहां 27 देशों से तेल खरीदता था, वहीं अब 40 देशों से तेल आयात करता है। हालांकि, रूस हमारा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। प्रतिबंध बढ़ने से आपूर्ति में कुछ व्यवधान आएगा। एक तरफ अमेरिका के साथ व्यापार समझौता अटका हुआ है तो दूसरी तरफ अमेरिका ने तेल को लेकर नया दांव चला है। हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत जहां से भी कम कीमत पर तेल मिल सकेगा, वहां से खरीदेगा। 

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