Mokshadayini Amavasya : अगर याद नहीं है पितरों की मृत्यु तिथि, तो किस दिन करें श्राद्ध? जानिए क्या कहता है शास्त्र
News India Live, Digital Desk: Mokshadayini Amavasya : हर साल भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक के 16 दिन हमारे पूर्वजों को समर्पित होते हैं. इस समय को हम पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि इन दिनों हमारे पितर धरती पर आते हैं और अपने परिवार से तर्पण और श्राद्ध के रूप में भोजन और जल ग्रहण करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है.
शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध कर्म हमेशा पितरों की मृत्यु तिथि पर ही किया जाना चाहिए. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हमें अपने किसी पूर्वज की मृत्यु की सही तारीख या तिथि याद नहीं रहती. ऐसे में मन में यह सवाल उठता है कि आखिर हम उनका श्राद्ध किस दिन करें ताकि उसका पुण्य फल उन्हें प्राप्त हो? इस उलझन को दूर करने के लिए हमारे शास्त्रों में बहुत स्पष्ट समाधान बताया गया है.
सर्व पितृ अमावस्या: जब सब पितरों का होता है एक साथ श्राद्ध
अगर आपको अपने किसी भी पूर्वज, चाहे वो दादा-दादी हों, नाना-नानी हों या कोई और, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, तो उनका श्राद्ध आश्विन मास की अमावस्या के दिन करना चाहिए. इस अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या या मोक्षदायिनी अमावस्या भी कहा जाता है.
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, 'सर्व पितृ' यानी 'सभी पितरों' के लिए. यह दिन उन सभी भूले-बिसरे पितरों को समर्पित है, जिनकी मृत्यु की तिथि हमें याद नहीं है या जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो. मान्यता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध, तर्पण और दान सीधा हमारे पितरों तक पहुंचता है और वे तृप्त होकर हमें सुख, समृद्धि और वंश वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
साल 2025 में सर्व पितृ अमावस्या 25 सितंबर, गुरुवार के दिन पड़ेगी.
कुछ विशेष परिस्थितियों के लिए भी हैं नियम
सर्व पितृ अमावस्या के अलावा भी कुछ विशेष स्थितियों के लिए शास्त्रों में अलग-अलग दिन बताए गए हैं:
- पिता के लिए: जिन लोगों के पिता जीवित हैं और उन्हें दादा की मृत्यु तिथि याद नहीं है, उन्हें भी अपने दादा का श्राद्ध इसी सर्व पितृ अमावस्या पर करना चाहिए.
- अविवाहित मृत सदस्य: अगर परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, तो उनका श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है.
- सौभाग्यवती महिलाओं के लिए: किसी सुहागिन महिला की मृत्यु की तिथि याद न होने पर उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए.
- संन्यासियों के लिए: अगर परिवार के किसी सदस्य ने संन्यास ले लिया हो और उनकी मृत्यु हो गई हो, तो उनका श्राद्ध द्वादशी तिथि पर करने का विधान है.
इसलिए यदि आप अपने पितरों की तिथि को लेकर असमंजस में हैं, तो सर्व पितृ अमावस्या के दिन पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उनके निमित्त तर्पण, श्राद्ध और दान करें. ऐसा करने से सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है.
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