Mining Royalty Case: सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का 'आखिरी दांव', रुक सकती है राज्यों की हजारों करोड़ की कमाई
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को दो बड़े मामलों पर हलचल देखने को मिली। एक तरफ चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट को लेकर पार्टियों का विरोध था, तो दूसरी तरफ खनन (Mining) के पैसों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच की खिंचतान। आइये, आसान भाषा में जानते हैं कि आज कोर्ट में क्या कुछ हुआ।
1. वोटर लिस्ट विवाद: अब 2 दिसंबर का इंतज़ार
चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे वोटर लिस्ट के रिवीजन (Special Summary Revision - SIR) को लेकर कई पार्टियां नाराज हैं। मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कझगम (MDMK) के प्रमुख वैको, DMK और हाल ही में राजनीति में आए साउथ एक्टर विजय की पार्टी (TVK) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इनका कहना है कि आयोग का तरीका सही नहीं है और इसकी संवैधानिकता पर सवाल उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आज इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसे टाल दिया है। अब इस मामले की सुनवाई 2 दिसंबर को होगी। तब तक चुनाव आयोग को अपना जवाब भी तैयार रखना होगा।
2. खनन रॉयल्टी: केंद्र सरकार ने चला 'आखिरी कानूनी दांव'
असली ड्रामा आज 'माइनिंग रॉयल्टी' यानी खनिज कर मामले में देखने को मिला।
आपको याद होगा कि जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इसमें कोर्ट ने 8:1 के बहुमत से कहा था कि- "जमीन के अंदर से निकलने वाले खनिजों पर टैक्स लगाने का हक राज्य सरकारों का है, न कि केंद्र का।" यह राज्यों के लिए लॉटरी लगने जैसा था, क्योंकि उन्हें 2005 से लेकर अब तक का बकाया वसूलने की छूट मिल गई थी।
आज क्या पेंच फंसा?
आज जब एक वकील ने कोर्ट से पूछा कि "राज्यों की बाकी अर्जियों पर सुनवाई कब होगी?", तो केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता खड़े हो गए।
उन्होंने साफ़ कहा कि केंद्र सरकार ने जुलाई वाले फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 'क्यूरेटिव पिटीशन' (Curative Petition) दाखिल की है। यह कानून की दुनिया में 'आखिरी उम्मीद' मानी जाती है, जब पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो जाए।
तुषार मेहता ने दलील दी कि, "हम यह केस जीतें या हारें, लेकिन जब तक हमारी इस मुख्य याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक राज्यों के अलग-अलग मामलों को सुनने का कोई मतलब नहीं है।"
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
इस पर सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि वो पहले रिकॉर्ड चेक करेंगे और उसके बाद तय करेंगे कि राज्यों की याचिकाओं को कब लिस्ट करना है।
मामला क्या है? (एक नज़र में)
दरअसल, पिछले साल कोर्ट ने फैसला दिया था कि खनिज वाले राज्य (जैसे झारखंड, ओडिशा आदि) कंपनियों और केंद्र से पुराना टैक्स भी वसूल सकते हैं। यह रकम 1 अप्रैल 2026 से किस्तों में दी जानी है। केंद्र सरकार को लगता है कि इससे बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ेगा और राज्यों को इतनी छूट नहीं मिलनी चाहिए। इसलिए अब सारा दारोमदार उस 'क्यूरेटिव पिटीशन' पर आ गया है।
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर हैं कि क्या वो अपना पुराना फैसला बदलेगा या राज्यों का हक़ बरकरार रखेगा।
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