संसद में गूंजी मनोज झा की दहाड़ राम सबके हैं, उन्हें अपनी ढाल मत बनाइये, रोजगार के मुद्दे पर तीखी बहस

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News India Live, Digital Desk : इस बार मनोज झा का गुस्सा दो चीजों को लेकर फूटा। पहला, राजनीति में भगवान राम के नाम का इस्तेमाल और दूसरा, मनरेगा (MGNREGA) कानून में किए जा रहे बदलाव। उनका कहना है कि सरकार आस्था की आड़ में गरीबों के पेट पर लात नहीं मार सकती।

"राम का नाम कोई लाइसेंस नहीं है"

मनोज झा ने संसद में बड़ी गंभीरता से एक मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि भगवान राम हम सबके हैं, वो आराध्य हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप 'जय श्री राम' का नारा लगाकर हर जिम्मेदारी से बच निकलें।

उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि आज कल ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे अगर आपने राम का नाम ले लिया, तो आपको हर गलती की माफ़ी मिल गई। चाहे वो कानून को कमजोर करना हो या गरीबों के हक को मारना हो। झा का कहना था— "राम का नाम किसी भी गलत काम को सही ठहराने का 'लाइसेंस' (License) नहीं बन सकता।"

मनरेगा की 'जान' निकाल रही है सरकार?

दूसरी सबसे बड़ी बात उन्होंने G-RAM-G (जिसका जिक्र शायद सरकार के किसी नए बिल या मसौदे के संदर्भ में हुआ) को लेकर कही। मनोज झा ने आरोप लगाया कि सरकार चुपचाप महात्मा गांधी नरेगा (MNREGA) योजना को खोखला कर रही है।

हम सब जानते हैं कि गाँवों में मनरेगा मजदूरों के लिए जीवनरेखा है। लेकिन मनोज झा के मुताबिक, नए नियमों और फंड की कमी के जरिए इसे धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ़ एक योजना नहीं, बल्कि रोजगार का कानूनी अधिकार है। इसे कमजोर करना सीधे-सीधे गरीबों के मुंह से निवाला छीनने जैसा है।

धर्म बनाम पेट का सवाल

आरजेडी ने बहस को एक नया मोड़ देने की कोशिश की है। उनका तर्क सीधा है—आप मंदिर की बात कीजिये, अच्छी बात है। लेकिन जब गाँव का मजदूर शाम को घर लौटेगा तो उसे रोटी चाहिए। अगर मनरेगा नहीं रहा, तो वो रोटी कहां से आएगी?

मनोज झा ने सरकार को चेतावनी दी है कि वे धार्मिक भावनाओं के शोर में बुनियादी मुद्दों को दबने नहीं देंगे। उनके इस भाषण के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या विपक्ष अब 2027 की तैयारी के लिए 'धर्म' के मुकाबले 'रोजी-रोटी' के मुद्दे को बड़ा हथियार बना रहा है?

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