सिर्फ़ शहादत नहीं, ये उस प्रेम की दास्ताँ है जिसने सोने की मुहरों से ज़मीन पाट दी फतेहगढ़ साहिब का वो सच

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News India Live, Digital Desk : आज जब हम दुनिया की सबसे महंगी ज़मीन के बारे में सोचते हैं, तो शायद हमारे दिमाग में न्यूयॉर्क, लंदन या मुंबई के पॉश इलाकों का नाम आता है। लेकिन भारत के पंजाब में एक ऐसी जगह है, जिसका मूल्य दुनिया की किसी भी रीयल एस्टेट प्रॉपर्टी से कहीं ऊपर है। हम बात कर रहे हैं फतेहगढ़ साहिब की उस पवित्र धरती की, जहाँ सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों का अंतिम संस्कार हुआ था।

यह सिर्फ़ एक ऐतिहासिक जगह नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे त्याग और अटूट विश्वास की गवाह है, जिसे सुनकर आज भी आंखें नम हो जाती हैं।

शहादत के बाद खड़ी हुई बड़ी मुश्किल
बात 1704 की है। जब मुगल गवर्नर वज़ीर खान ने बड़ी ही क्रूरता से साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया, तो उसके बाद उनकी देह के अंतिम संस्कार के लिए जगह की बात आई। मुगलों ने फरमान सुनाया था कि इस संस्कार के लिए सरकारी ज़मीन का इस्तेमाल नहीं होगा। यानी मुगलों के अधीन उस ज़मीन पर संस्कार करने की मनाही थी।

दीवान टोडर मल और वो कड़ी शर्त
इतिहास कहता है कि उस समय दीवान टोडर मल नाम के एक बड़े व्यापारी और गुरु घर के अनन्य सेवक आगे आए। उन्होंने वज़ीर खान से ज़मीन मांगी, लेकिन वज़ीर खान ने एक ऐसी शर्त रख दी जो नामुमकिन सी लगती थी। शर्त यह थी कि—"जितनी ज़मीन पर संस्कार करना है, उसे सोने की मुहरों (सिक्कों) से पूरी तरह पाट दिया जाए।" इतना ही नहीं, सिक्के लिटाकर नहीं बल्कि खड़ी स्थिति में (खड़े सिक्के) रखे जाने चाहिए।

सोने की मोहरों से पटी धरती
दीवान टोडर मल ने ज़रा भी देर नहीं की। साहिबजादों और माता गुजरी जी के सम्मान में उन्होंने अपनी पूरी उम्र की कमाई और सारा खज़ाना लगा दिया। चार गज ज़मीन के लिए हज़ारों सोने की मोहरें खड़ी कर दी गईं ताकि वह जगह ढकी जा सके। आज उस जगह को हम 'गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप' के नाम से जानते हैं।

अगर आज के हिसाब से उस सोने की कीमत आंकी जाए, तो वह दुनिया की किसी भी आलीशान प्रॉपर्टी से कई गुना ज़्यादा बैठती है। इसीलिए फतेहगढ़ साहिब की उस ज़मीन को 'दुनिया की सबसे महंगी ज़मीन' कहा जाता है।

कीमत पैसों की नहीं, जज़्बात की थी
सच्चाई तो ये है कि दीवान टोडर मल ने वह कीमत ज़मीन के लिए नहीं, बल्कि उस रूहानी मोहब्बत के लिए दी थी जो उन्हें अपने गुरु से थी। वीर बाल दिवस के इस मौके पर यह कहानी हमें याद दिलाती है कि इतिहास में ऐसे लोग भी हुए हैं जिन्होंने सत्य और धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।

साहिबजादों की शहादत तो अनमोल है ही, पर दीवान टोडर मल जैसा समर्पण भी हमें सिखाता है कि वीरता और सेवा की कोई उम्र या सीमा नहीं होती।

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