Islamabad-Kabul Relations : क्या TTP बनेगा पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच जंग की वजह? शांति वार्ता पटरी से उतरी

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News India Live, Digital Desk: पड़ोसी मुल्कों, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच शांति कायम करने की एक और बड़ी कोशिश नाकाम हो गई है. तुर्की में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच चल रही अहम बातचीत बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई, जब पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल गुस्से में बैठक छोड़कर बाहर चला गया. इस घटना के बाद दोनों देशों के रिश्ते और भी ज़्यादा तनावपूर्ण हो गए हैं, और अब ये सवाल उठ रहा है कि क्या आगे हालात और बिगड़ सकते हैं.

इस तनाव की जड़ में क्या है?

इस पूरी बातचीत के टूटने की सबसे बड़ी वजह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) नाम का आतंकी संगठन है. पाकिस्तान का लंबे समय से ये आरोप रहा है कि TTP अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल करके उसके यहाँ हमले करता है और अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार उसे पनाह देती है.

बातचीत में ऐसा क्या हुआ कि टूट गई?

तुर्की के इस्तांबुल शहर में हो रही बैठक में, पाकिस्तानी अधिकारियों ने अफ़ग़ान पक्ष के सामने एक सीधी और साफ़ मांग रखी. उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान को TTP के ख़िलाफ़ अपनी ज़मीन पर एक बड़ी सैन्य कार्रवाई करनी होगी. पाकिस्तान चाहता था कि तालिबान सरकार TTP को आतंकी घोषित करे और उसके सारे ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दे.

लेकिन, अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान शासकों ने इस मांग को मानने से साफ़ इनकार कर दिया. उनका कहना था कि TTP पाकिस्तान का अपना अंदरूनी मसला है और वे किसी और देश के लिए अपनी धरती पर लड़ाई नहीं छेड़ेंगे. तालिबान के एक अधिकारी ने यहाँ तक कहा कि "हम तुम्हारी लड़ाई क्यों लड़ें?" इसी बात पर दोनों पक्षों में बहस तेज़ हो गई और पाकिस्तानी अधिकारी बैठक से बाहर निकल गए.

अफ़ग़ानिस्तान की भी अपनी शर्तें थीं

अफ़ग़ान प्रतिनिधिमंडल ने भी पाकिस्तान के सामने अपनी शिकायतें रखीं. उन्होंने पाकिस्तान पर उनके हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और इसे तुरंत रोकने की मांग की. उनका कहना था कि वे अपनी ज़मीन किसी भी देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे, लेकिन वे किसी के दबाव में आकर कोई कदम नहीं उठाएंगे.

अब आगे क्या हो सकता है?

इस बातचीत के असफल होने से दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई और चौड़ी हो गई है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री पहले ही यह चेतावनी दे चुके हैं कि अगर बातचीत का कोई हल नहीं निकला तो "खुली जंग" के हालात भी पैदा हो सकते हैं. सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच छोटी-मोटी झड़पें पहले भी होती रही हैं, लेकिन अब तनाव काफ़ी ज़्यादा बढ़ गया है.

पूरी दुनिया की नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि क्या तुर्की और क़तर जैसे देश, जो इस बातचीत में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे, दोनों पक्षों को फिर से एक मेज पर ला पाएंगे. फ़िलहाल, दक्षिण एशिया के इस हिस्से में शांति की उम्मीदें काफ़ी धुंधली नज़र आ रही हैं.

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