छत्तीसगढ़ में पुलिस की दहशत या घर वापसी की चाह? 1 करोड़ के ईनामी नक्सली ने टेके घुटने

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News India Live, Digital Desk : छत्तीसगढ़ के जंगलों से अक्सर हमें गोलीबारी और जवानों की शहादत की खबरें सुनने को मिलती हैं, जिससे मन दुखी हो जाता है। लेकिन आज वहां से एक ऐसी "गुड न्यूज़" आई है जो बताती है कि बस्तर और दंतेवाड़ा के हालात अब बदल रहे हैं।

लाल आतंक (Naxalism) का गढ़ माने जाने वाले इलाकों में पुलिस और सुरक्षा बलों का दबाव इतना बढ़ गया है कि बड़े-से-बड़े नक्सली कमांडर की हिम्मत जवाब दे गई है। ताज़ा खबर यह है कि एक 1 करोड़ रुपये के ईनामी नक्सली ने अपने 11 साथियों के साथ पुलिस के सामने सरेंडर (आत्मसमर्पण) कर दिया है।

कौन है ये 1 करोड़ का ईनामी?

पुलिस के लिए 1 करोड़ का इनाम कोई छोटी बात नहीं होती। यह इनाम तभी रखा जाता है जब वह नक्सली संगठन का कोई बहुत बड़ा लीडर या 'थिंक टैंक' हो। खबरों के मुताबिक, इस हार्डकोर नक्सली ने मान लिया है कि जंगल में अब उनकी दाल नहीं गलने वाली। उसके साथ 11 अन्य खूंखार नक्सलियों ने भी हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है।

यह सरेंडर इसलिए भी खास है क्योंकि ये लोग खाली हाथ नहीं आए, बल्कि अपने हथियार भी पुलिस को सौंप दिए। यह इस बात का सबूत है कि वे हमेशा के लिए हिंसा छोड़ रहे हैं।

क्यों आ गए मुख्यधारा में?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सालों तक जंगल में राज करने वाले ये कमांडर अचानक पुलिस के पास क्यों आ रहे हैं? इसके दो बड़े कारण सामने आए हैं:

  1. एनकाउंटर का खौफ: नक्सलियों ने खुद कबूला है कि उन्हें अब 'एनकाउंटर' (मुठभेड़) का डर सताने लगा है। पुलिस जिस आक्रामकता से ऑपरेशन चला रही है और कैंप स्थापित कर रही है, उससे नक्सलियों को छिपने की जगह नहीं मिल रही। उन्हें पता है कि या तो गोली लगेगी या जेल होगी।
  2. खोखली विचारधारा: सरेंडर करने वाले नक्सलियों का कहना है कि बड़े नेता ऐश करते हैं और छोटे कैडर सिर्फ मरने के लिए भेज दिए जाते हैं। अब उन्हें विकास और सरकार की नीतियां ज्यादा लुभा रही हैं।

शांति की ओर बड़ा कदम

राज्य सरकार की पुनर्वास नीति (Rehabilitation Policy) का भी इसमें बड़ा हाथ है। जो नक्सली सरेंडर करते हैं, सरकार उन्हें सम्मान के साथ जीने का मौका, घर और रोजगार के लिए आर्थिक मदद देती है। यह एक संदेश है बाकी भटके हुए युवाओं के लिए कि "बंदूक से पेट नहीं भरता, घर लौट आओ।"

इस घटना को सुरक्षा बलों की बहुत बड़ी 'मनोवैज्ञानिक जीत' माना जा रहा है। जब 1 करोड़ का कमांडर सरेंडर कर सकता है, तो नीचे के कैडर का मनोबल अपने आप टूट जाता है।

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