H-1B Visa Update : अमेरिका के 20 राज्यों ने सरकार के खिलाफ क्यों खोला मोर्चा? जानिए इसका भारतीय छात्रों पर क्या असर होगा

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News India Live, Digital Desk: हम सब जानते हैं कि अमेरिका में पढ़ाई करना या नौकरी करना हर साल लाखों भारतीय युवाओं का सपना होता है। लेकिन पिछले कुछ समय से वीजा नियमों को लेकर जो अनिश्चितता बनी हुई है, उसने न सिर्फ वहां रह रहे लोगों की नींद उड़ाई है, बल्कि उन राज्यों (States) को भी परेशान कर दिया है जहां ये लोग काम करते हैं या पढ़ते हैं।

हाल ही में एक बड़ी खबर सामने आई है जिसने सबको चौंका दिया है। अमेरिका के करीब 20 राज्यों ने एक साथ मिलकर संघीय सरकार (Federal Government/Trump Administration context from link) के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मामला H-1B वीजा और विदेशी छात्रों से जुड़े नए और सख्त नियमों का है।

चलिए, आसान भाषा में समझते हैं कि पूरा मामला क्या है और यह क्यों इतना गंभीर है।

आखिर इन राज्यों ने सरकार पर केस क्यों किया?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अमेरिका के अपने ही राज्य अपनी सरकार के खिलाफ क्यों जा रहे हैं? इसका जवाब है- आर्थिक नुकसान (Financial Burden)।

मैसाचुसेट्स (Massachusetts) के अटॉर्नी जनरल और अन्य 19 राज्यों का कहना है कि सरकार वीजा नियमों में जो बदलाव कर रही है, या जो सख्ती दिखा रही है, उससे उन राज्यों की इकोनॉमी को भारी नुकसान हो रहा है।

इन राज्यों का तर्क बिलकुल साफ़ है:
जब सरकार H-1B वीजा धारकों या अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए नियम सख्त करती है, तो विदेशी टैलेंट अमेरिका आने से कतराने लगता है। इससे न सिर्फ यूनिवर्सिटीज की कमाई पर असर पड़ता है, बल्कि वहां की लोकल कंपनियों को भी स्किल्ड कर्मचारी (Skilled Workers) नहीं मिल पाते।

'अनलॉफुल प्रेजेंस' (Unlawful Presence) का पेंच

इस पूरे विवाद की जड़ में एक नियम है जिसे 'अनलॉफुल प्रेजेंस' कहा जाता है। राज्यों ने अपनी शिकायत में कहा है कि सरकार ने वीजा ओवरस्टे (Visa Overstay) या स्टेटस को लेकर जो नए पैमाने बनाए हैं, वे न केवल भ्रम पैदा करते हैं बल्कि बहुत ज्यादा सख्त भी हैं।

इस नियम के तहत, अगर किसी छात्र या वीजा होल्डर से अंजाने में कोई चूक हो जाती है, तो उन्हें तुरंत अमेरिका छोड़ने के लिए कहा जा सकता है और भविष्य में उनके वापस आने पर भी कई सालों का बैन लग सकता है।

राज्यों का कहना है कि इस डर की वजह से:

  1. विदेशी छात्र अब अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में एडमिशन लेने से डर रहे हैं।
  2. जो H-1B कर्मचारी वहां काम कर रहे हैं, वो खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
  3. हेल्थकेयर और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में टैलेंट की कमी हो रही है।

यह लड़ाई क्यों अहम है?

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस कानूनी लड़ाई में मैसाचुसेट्स के साथ-साथ पेंसिल्वेनिया, ओरेगन, और वर्जीनिया जैसे बड़े राज्य भी शामिल हैं। इन राज्यों का मानना है कि विदेशी छात्र और H-1B वीजा पर आए प्रोफेशनल्स उनके राज्य की तरक्की में बहुत बड़ा योगदान देते हैं। वे न सिर्फ टैक्स भरते हैं, बल्कि वहां की इकॉनमी को चलाने में मदद करते हैं।

इन राज्यों ने कोर्ट में साफ़ तौर पर कहा कि सरकार के ये फैसले मनमाने हैं और इन्हें सही प्रक्रिया का पालन किए बिना लागू किया गया है, जिससे राज्यों पर "अवैध वित्तीय बोझ" (Illegal Financial Burdens) बढ़ गया है।

भारतीयों के लिए इसका क्या मतलब है?

हम भारतीयों के लिए यह खबर एक उम्मीद की किरण जैसी है। H-1B वीजा पाने वालों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की ही होती है। जब अमेरिकी राज्य खुद आगे बढ़कर यह कह रहे हैं कि "हमें इन लोगों की जरूरत है" और "सख्त नियमों से नुकसान हो रहा है," तो यह दर्शाता है कि वहां के सिस्टम में भारतीय टैलेंट की कितनी कद्र है।

अगर कोर्ट इन राज्यों के पक्ष में फैसला सुनाता है, तो भविष्य में वीजा नियम थोड़े आसान हो सकते हैं और वहां रह रहे छात्रों और पेशेवरों के सिर से निर्वासन (Deportation) की तलवार हट सकती है।

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