शशि थरूर पर कांग्रेस कन्फ्यूज है? जीत की गारंटी या पार्टी में बगावत का डर

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News India Live, Digital Desk : राजनीति में कभी-कभी सबसे लोकप्रिय चेहरा ही पार्टी के लिए सबसे बड़ी दुविधा (Dilemma) बन जाता है। कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों केरल कांग्रेस और उनके हाई-प्रोफाइल नेता शशि थरूर (Shashi Tharoor) का है।

पूरी दुनिया शशि थरूर को उनकी शानदार अंग्रेजी और वैश्विक छवि के लिए जानती है। लेकिन पिछले कुछ समय से तिरुवनंतपुरम के सांसद थरूर ने अपने तेवर बदल लिए हैं। अब उन्हें दिल्ली की संसद से ज्यादा केरल की विधानसभा लुभा रही है। और यही बात कांग्रेस हाईकमान के लिए सिरदर्द बनी हुई है।

आखिर मसला क्या है?

सीधी बात यह है कि केरल में जल्द ही विधानसभा चुनाव (Kerala Assembly Election) की बिसात बिछने वाली है। कांग्रेस वहां सत्ता में वापसी के लिए छटपटा रही है। ऐसे में शशि थरूर ने दबे लफ्जों में, और कभी-कभी खुलकर यह जाहिर कर दिया है कि वे मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनने की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं।

आम जनता, खासकर युवा (Youth) और पढ़े-लिखे लोग थरूर को सीएम कैंडिडेट के रूप में देखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि थरूर के पास केरल को बदल डालने का विजन है। लेकिन, कांग्रेस पार्टी के अंदर कहानी इतनी सीधी नहीं है।

दिल्ली में बैठी कमान क्यों डरी हुई है?

कांग्रेस नेतृत्व के सामने "इधर कुआं, उधर खाई" वाली स्थिति है।

  1. थरूर की ताकत: थरूर वो चेहरा हैं जो न्यूट्रल वोटर्स (जो किसी पार्टी के पक्के भक्त नहीं हैं) को खींच सकते हैं। वो यूथ के बीच पॉपुलर हैं और समाज के विभिन्न तबकों (नायर, चर्च, अल्पसंख्यक) में पैठ बना रहे हैं। अगर कांग्रेस उन्हें आगे करती है, तो चुनाव जीतने के चांस बढ़ सकते हैं।
  2. पार्टी का डर: दूसरी तरफ, केरल कांग्रेस के पुराने और दिग्गज नेता (Old Guard) थरूर को बाहरी या 'पैराशूट लीडर' मानते हैं। वी.डी. सतीशन और के. सुधाकरन जैसे नेता सालों से संगठन चला रहे हैं। अगर थरूर को अचानक 'सीएम फेस' बना दिया गया, तो पार्टी के अंदर भयंकर बगावत हो सकती है। गुटबाजी (Groupism) केरल कांग्रेस की पुरानी बीमारी है, जो फिर से उभर सकती है।

थरूर ने बदल दी है अपनी स्टाइल

आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि थरूर अब सिर्फ लिटरेचर फेस्ट में नहीं जाते। वे आजकल केरल के धार्मिक मठों, प्रभावशाली सामाजिक नेताओं और कम्युनिटी लीडर्स से मिल रहे हैं। यह साफ इशारा है कि वो अब 'एलिट' इमेज से बाहर निकलकर जमीनी नेता बनना चाहते हैं।

आगे क्या होगा?

कांग्रेस नेतृत्व ने फिलहाल 'वेट एंड वॉच' (Wait and Watch) की नीति अपना रखी है। वे न तो थरूर को मना कर सकते हैं क्योंकि वो एक 'विनिंग कार्ड' हैं, और न ही उन्हें खुलकर दूल्हा बना सकते हैं क्योंकि बाराती (बाकी नेता) नाराज हो जाएंगे।

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस रिस्क लेकर थरूर पर दांव खेलती है, या फिर पुरानी परंपरा के हिसाब से ही चलती है। लेकिन एक बात तय है थरूर ने अपनी दावेदारी पेश कर दिल्ली से लेकर तिरुवनंतपुरम तक खलबली जरूर मचा दी है।

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