Chhattisgarh Naxalism : सिर्फ एक शक और मौत का फरमान, जानिए क्यों शिक्षकों के खून के प्यासे हैं नक्सली
News India Live, Digital Desk: Chhattisgarh Naxalism : जहां बच्चों के हाथों में कलम और किताबें होनी चाहिए थीं, वहां बंदूक और खौफ का साया है। छत्तीसगढ़ का सुकमा जिला एक बार फिर दहल गया, जहां नक्सलियों ने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए एक युवा शिक्षक की बेरहमी से हत्या कर दी। यह कोई मुठभेड़ नहीं थी, बल्कि सैकड़ों गांव वालों के सामने सजा-ए-मौत का एक बर्बर खेल था, जिसे नक्सली 'जनअदालत' कहते हैं।
क्या हुआ था उस दिन?
मामला जगरगुंडा इलाके का है, जहां नक्सलियों ने एक 'जनअदालत' लगाई थी। इसी सभा में उन्होंने 25 साल के शिक्षक दूधी अर्जुन को पेश किया। दूधी अर्जुन कोई मामूली शिक्षक नहीं थे, वे एक 'शिक्षादूत' थे, जो सरकार की तरफ से उन अति दुर्गम और नक्सल प्रभावित इलाकों में बच्चों को पढ़ाने का साहसिक काम करते थे, जहां कोई और जाने की हिम्मत नहीं करता।
नक्सलियों ने उन पर पुलिस का मुखबिर होने का झूठा आरोप लगाया। फिर भरी सभा में ही मौत का फरमान सुना दिया गया। इसके बाद जो हुआ, वह सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए। नक्सलियों ने पहले तो दूधी अर्जुन को लाठियों से बेरहमी से पीटा और फिर गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी। क्रूरता की हद तो यह थी कि उन्होंने शिक्षक के परिवार को भी जान से मारने की धमकी दी है।
क्यों शिक्षकों को बना रहे हैं निशाना?
यह कोई पहली बार नहीं है जब नक्सलियों ने किसी शिक्षक को अपना निशाना बनाया हो। पिछले एक साल में यह बस्तर में दूसरे 'शिक्षादूत' की हत्या है। दरअसल, नक्सलियों को शिक्षा और विकास से सबसे ज्यादा डर लगता है।
जब शिक्षक दूधी अर्जुन जैसे युवा इन इलाकों में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं, तो वे उन्हें मुख्यधारा से जोड़ते हैं। इससे नक्सलियों को अपनी 'लड़ाकों' की फौज में बच्चों को भर्ती करने में मुश्किल होती है। बौखलाए नक्सली अब उन्हीं लोगों को निशाना बना रहे हैं जो इन इलाकों में उम्मीद का दीया जला रहे हैं। पिछले दो दशकों में नक्सलियों के डर से बंद हुए कई स्कूलों को अब दोबारा खोला जा रहा है और अर्जुन जैसे शिक्षक इस मुहिम की रीढ़ थे।
पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर लिया है और हत्या में शामिल नक्सलियों की पहचान करने की कोशिश कर रही है। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर उस स्याह सच को सामने ला दिया है कि बस्तर के कई इलाकों में आज भी कलम पर बंदूक भारी है। यह हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उन हजारों बच्चों के सपनों की भी हत्या है, जिन्हें दूधी अर्जुन जैसे शिक्षक एक बेहतर भविष्य देना चाहते थे।
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