Bollywood Director : बचपन में महेश भट्ट क्यों हुए इस गंदे सवाल का शिकार, अब जाकर बताई आपबीती

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News India Live, Digital Desk: Bollywood Director : क्या आप भी महेश भट्ट की फिल्मों और उनके बोल्ड अंदाज़ के दीवाने हैं? उनकी जिंदगी से जुड़ी बातें अक्सर चर्चा में रहती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं उनके बचपन में एक ऐसा वाकया हुआ था, जिसने उनके दिल पर गहरी छाप छोड़ी थी? यह घटना सिर्फ एक खेल-खेल में हुई बात नहीं थी, बल्कि ये कुछ गहरे सामाजिक भेदभाव की तस्वीर दिखाती है, जिसने महेश भट्ट को यह सोचने पर मजबूर किया कि वह दूसरों से कितने अलग हैं.

महेश भट्ट का बचपन और वह डरा देने वाला पल!

ये बात उनके बचपन की है. महेश भट्ट खुद बताते हैं कि उन्हें कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि वह 'बाकियों' से अलग हैं. उनका परिवार एक अजीबोगरीब सा माहौल था, जहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों संस्कृतियों का मेल था. उनकी माँ मुस्लिम थीं और पिता हिंदू, जिसकी वजह से उनके घर में गंगा-जमुनी तहज़ीब का माहौल था. लेकिन बचपन में कई बार बच्चों के सवाल या उनका नज़रिया बड़े लोगों से भी ज़्यादा नुकीला और तकलीफदेह होता है.

एक बार कुछ लड़कों ने महेश भट्ट को घेर लिया था. उन्हें महेश पर शक था कि वो कहीं 'पारसी' तो नहीं. अब आप सोच रहे होंगे, इसमें क्या बड़ी बात है? बात सिर्फ पारसी होने की नहीं थी, बल्कि बच्चों के दिमाग में समुदायों के बीच एक तरह की "पहचान" का बंटवारा था. ये लड़के जानना चाहते थे कि महेश भट्ट उनके समूह का हिस्सा हैं या नहीं. और यह जानने का उनका तरीका बहुत ही क्रूर था.

उन लड़कों ने महेश भट्ट से अपनी पैंट नीचे करने को कहा था! उनका इरादा था ये जांचना कि महेश भट्ट का खतना (circumcision) हुआ है या नहीं. अगर खतना होता, तो वो मानते कि महेश उनके जैसा नहीं है, शायद 'पारसी' या किसी और समुदाय से है. एक मासूम बच्चे के लिए ऐसे सवालों का सामना करना, और उससे उसकी शारीरिक बनावट को जांचने की मांग करना, ये कितना डरावना और शर्मनाक अनुभव रहा होगा.

महेश भट्ट कहते हैं कि इस घटना ने उन्हें भीतर से हिला दिया था. इस घटना से पहले उन्हें कभी 'अलग' होने का अहसास नहीं हुआ था, लेकिन इस वाकये ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वे अपनी पहचान को अलग नज़र से देखें. ये वो लम्हा था जब उन्हें समाज की पहचान और 'अलग होने' की धारणा का पहला कड़वा स्वाद मिला था. ये बताता है कि कैसे बचपन के अनुभव हमारी सोच और व्यक्तित्व को गढ़ने में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं, और कैसे छोटी-मोटी घटनाएं भी बड़े गहरे निशान छोड़ जाती हैं.

यह वाकया दिखाता है कि धर्म और पहचान को लेकर हमारी समाज में कितनी गहरी जड़ें हैं और कभी-कभी ये कैसे मासूम बचपन को भी अपनी चपेट में ले लेती हैं.

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