BHU के रिसर्च ने बताया सिर्फ फेफड़े ही नहीं, वायु प्रदूषण से दिमाग को भी होता है भारी नुकसान

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News India Live, Digital Desk : क्या आपने कभी सोचा है कि जिस हवा में हम सांस ले रहे हैं, वह सिर्फ हमारे फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि हमारे दिमाग को भी धीरे-धीरे खा रही है? बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसी चौंकाने वाली रिसर्च (Research) की है, जिसने वायु प्रदूषण (Air pollution) के खतरनाक प्रभावों को एक नए पहलू से उजागर किया है। अब तक हम मानते थे कि प्रदूषण मुख्य रूप से सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों (Lung diseases) के लिए ज़िम्मेदार है, लेकिन BHU की इस रिसर्च ने यह स्थापित किया है कि प्रदूषित हवा मस्तिष्क से जुड़ी गंभीर बीमारियों (Brain diseases) का भी एक बड़ा कारण बन सकती है।

BHU रिसर्च: दिमाग पर प्रदूषण का ख़ामोश हमला

BHU के विशेषज्ञ लंबे समय से वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों पर शोध कर रहे थे। इस नई रिसर्च में, उन्होंने गहराई से अध्ययन किया और पाया कि हवा में मौजूद बारीक कण (पीएम 2.5 जैसे प्रदूषक तत्व) सिर्फ सांस के ज़रिए हमारे शरीर में प्रवेश नहीं करते, बल्कि रक्त प्रवाह के माध्यम से हमारे मस्तिष्क तक भी पहुँच जाते हैं। ये सूक्ष्म कण दिमाग में पहुँचकर तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे कई तरह की न्यूरोलॉजिकल समस्याएं (neurological problems) पैदा हो सकती हैं।

शोध के नतीजों में संकेत मिला है कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से अल्जाइमर (Alzheimer), पार्किंसन (Parkinson) जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है, साथ ही सोचने-समझने की शक्ति (cognitive function) भी प्रभावित हो सकती है। इसका मतलब यह है कि बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सभी पर प्रदूषित हवा का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उनकी मानसिक क्षमताओं और समग्र स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ेगा।

क्यों है यह चिंताजनक?

भारत जैसे देश में जहाँ कई बड़े शहर गंभीर वायु प्रदूषण का सामना कर रहे हैं, BHU की यह रिसर्च बहुत मायने रखती है। यह न केवल लोगों को वायु प्रदूषण के प्रति और ज़्यादा सचेत रहने की चेतावनी देती है, बल्कि सरकारों और नीति निर्माताओं को भी इस समस्या से निपटने के लिए और भी कड़े कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है।

तो अगली बार जब आप बाहर निकलें, तो सिर्फ अपने फेफड़ों की चिंता न करें, बल्कि अपने दिमाग के स्वास्थ्य के बारे में भी सोचें। स्वच्छ हवा अब सिर्फ फेफड़ों की ही नहीं, बल्कि दिमागी सेहत के लिए भी बेहद ज़रूरी हो गई है। यह रिसर्च हमें दिखाती है कि कैसे हमारा पर्यावरण हमारे हर अंग को प्रभावित करता है।

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