तीर्थ जा रहे हो? रुकिए प्रेमानंद महाराज की ये बात नहीं मानी, तो सारा पुण्य पाप में बदल जाएगा
News India Live, Digital Desk : हम भारतीय चाहे कितने भी मॉडर्न हो जाएं, जब मन परेशान होता है या जिंदगी में उलझनें बढ़ती हैं, तो हमें 'भगवान के घर' यानी किसी तीर्थ स्थल की याद ज़रूर आती है। केदारनाथ हो, वृन्दावन हो या जगन्नाथ पुरी, इन जगहों पर जाने की एक अलग ही होड़ लगी रहती है। लेकिन, क्या हम वाकई तीर्थ यात्रा का मतलब समझते हैं? या फिर इसे भी हमने सिर्फ़ एक 'वीकेंड ट्रिप' बना लिया है?
वृंदावन के मशहूर संत प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) ने हाल ही में अपने सत्संग में तीर्थ यात्रा की महत्ता और वहां जाने के नियमों पर कुछ ऐसी बातें कही हैं, जो हर श्रद्धालु को सुननी चाहिए। उनकी बातें कड़वी जरूर लग सकती हैं, लेकिन ये आपकी आंखें खोल देंगी।
क्यों ज़रूरी है तीर्थ यात्रा?
प्रेमानंद जी बताते हैं कि तीर्थ, संतों की तपोभूमि होते हैं। वहां का ज़र्रा-ज़र्रा भगवान की ऊर्जा से भरा होता है। जब हम वहां जाते हैं, तो सिर्फ़ जगह नहीं बदलते, बल्कि हमारे भीतर की नकारात्मकता भी बदलती है। महाराज जी कहते हैं कि तीर्थ का दर्शन मात्र ही हमारे करोड़ों जन्मों के पापों को भस्म करने की ताकत रखता है।
जब आप घर-परिवार और ऑफिस की चिंताओं से दूर प्रभु के धाम में कदम रखते हैं, तो आपका मन अपने आप शांत और पवित्र होने लगता है। अगर आपका मन पूजा-पाठ में नहीं लगता, तो तीर्थ यात्रा एक ऐसी "दवाई" है जो आपके मन को भगवान से जोड़ सकती है।
सावधान! कहीं आप भी ये गलती तो नहीं कर रहे?
लेकिन, यहाँ महाराज जी ने एक "Red Alert" यानी चेतावनी भी दी है।
अक्सर देखा जाता है कि लोग तीर्थ स्थानों पर जाकर भी अपनी पुरानी आदतों से बाज़ नहीं आते। वहां जाकर हंसी-ठिठोली करना, इधर-उधर की बातें करना, गलत खान-पान या नशा करना... ये सब आम होता जा रहा है। प्रेमानंद महाराज कहते हैं, "तीर्थ को पिकनिक स्पॉट मत बनाओ।"
उन्होंने एक बहुत गहरी बात कही है— 'वज्रलेप' (Vajralep)।
इसका मतलब है, अगर आप घर या किसी साधारण जगह पाप करते हैं, तो वो तीर्थ जाने से धुल सकते हैं। लेकिन अगर आपने तीर्थ जैसी पवित्र जगह पर जाकर पाप या गलत काम किया, तो वो 'पत्थर की लकीर' बन जाता है। उसे धोना लगभग नामुमकिन है। इसलिए तीर्थ पर जाकर सिर्फ़ शरीर नहीं, मन और वाणी पर भी काबू रखना बहुत ज़रूरी है।
कैसे करें सही तीर्थ यात्रा?
प्रेमानंद जी सलाह देते हैं कि जब भी आप किसी धाम में जाएं, तो वहां श्रद्धा और दीनता के साथ जाएं। वहां के पेड़-पौधों, रजो गुण (धूल) और वहां के वासियों का सम्मान करें। सिर्फ़ फ़ोटो खींचने या रील्स बनाने में वक्त न बिताएं, बल्कि कुछ पल आंखें बंद करके उस जगह की वाइब्स को महसूस करें।
अगर वहां जाकर आपका मन किसी की निंदा, क्रोध या वासना में फंसा रहा, तो समझिए आपकी यात्रा का फल 'शून्य' है।
तो दोस्तों, अगली बार जब भी बैग पैक करें किसी मंदिर या तीर्थ के लिए, तो प्रेमानंद जी की ये बातें गाँठ बांध लें। यात्रा शरीर की नहीं, आत्मा की होनी चाहिए।
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