Yamlok : गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद कैसा होता है यमलोक और आत्मा का सफर
- by Archana
- 2025-08-09 08:42:00
Newsindia live,Digital Desk: गरुड़ पुराण में जीवन मरण और उसके बाद की घटनाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है मृत्यु को केवल शरीर का अंत माना जाता है आत्मा तो अमर है जो एक देह त्याग कर दूसरी धारण कर लेती है गरूण पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा यमलोक की यात्रा करती है यमलोक पर यमराज का शासन है यह स्थान सभी जीवों के कर्मों का लेखा जोखा रखता है मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा के लिए दो मुख्य मार्ग बताए गए हैं एक मार्ग पितृलोक को जाता है जहां धार्मिक और पुण्यात्माएं जाती हैं और दूसरा मार्ग यमराज के न्याय और दंड का अनुभव कराता है वैकुण्ठ या मोक्ष की प्राप्ति तभी होती है जब व्यक्ति जीवन में केवल पुण्य कर्म करे और माया मोह से दूर रहे
यमलोक का रास्ता बेहद कठिन माना जाता है यह निन्यानबे हजार योजन लंबा होता है जो लगभग एक वर्ष का समय लेता है मृत्यु के बाद यमदूत आत्मा को लेने आते हैं आत्मा को तत्काल ही उसके कर्मों के अनुसार या तो स्वर्गलोक या नरक लोक में ले जाया जाता है इस यात्रा में आत्मा को घोर कष्ट झेलने पड़ते हैं यह रास्ता कहीं जलता हुआ तो कहीं कांटेदार होता है धूप की तपिश और जलती हुई रेत से गुजरना पड़ता है कई जगह पर नदियां भी पार करनी होती हैं इनमें सबसे भयावह वैतरणी नदी है पापी आत्माओं के लिए यह नदी रक्त मवाद मांस हड्डियों और मल से भरी होती है जिसमें भयंकर जीव विचरण करते हैं जो उन्हें और भी यातना देते हैं ऐसी नदी को पार करना असंभव होता है वहीं पुण्यात्माओं के लिए वैतरणी एक साधारण नदी जैसी होती है जिसमें स्वच्छ जल बहता है वैतरणी नदी पार करने का एक उपाय गोदान यानी गाय का दान करना बताया गया है मान्यता है कि जीवन में गौदान करने वाले व्यक्ति के लिए वैतरणी नदी सहज हो जाती है
यमलोक पहुँचकर आत्मा को यमराज की धर्मसभा में प्रस्तुत किया जाता है यहां पर चित्रगुप्त महाराज सभी जीवों के पाप पुण्य का लेखा जोखा प्रस्तुत करते हैं आत्मा द्वारा किए गए हर कर्म हर विचार का सूक्ष्म से सूक्ष्म हिसाब रखा जाता है अंततः आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार उचित न्याय मिलता है और वह स्वर्ग नर्क या किसी अन्य योनि में जन्म लेती है गरुड़ पुराण में विभिन्न नर्कों का भी उल्लेख है जैसे कुम्भीपाक रौरव महारौरव तमिस्त्र आदि हर पाप के लिए एक विशिष्ट नरक दंड का विधान है इस यात्रा के दौरान आत्मा को शक्ति देने और उसे सद्गति दिलाने के लिए परिजनों द्वारा पिंडदान करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है पिंडदान के बिना आत्मा भटकती रहती है इसलिए गरूण पुराण में इसका विशेष महत्व बताया गया है
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