Foreign Investor : रुपया डॉलर के आगे क्यों हार रहा है? आपकी जेब पर पड़ेगा सीधा असर

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News India Live, Digital Desk: आजकल बाज़ारों में जब रुपये और डॉलर की बात होती है, तो सबकी धड़कनें थोड़ी तेज़ हो जाती हैं, है ना? रुपया बनाम डॉलर का खेल लगातार हमें अपनी तरफ़ खींच रहा है, और अभी हाल ही में भारतीय रुपये को एक बार फिर अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले गिरावट का सामना करना पड़ा है. यह महज़ एक संख्या नहीं, बल्कि कई बड़े आर्थिक कारकों का सीधा असर है.

अभी, 1 अमेरिकी डॉलर लगभग ₹88.175 भारतीय रुपये के बराबर है

रुपये की धड़कन तेज़! डॉलर के आगे फिर लुढ़का, पहुंचा 87.70 के 'सपोर्ट लेवल' पर - जानें आपकी जेब पर क्या होगा असर?

हाल ही में, भारतीय रुपये (INR) एक बार फिर अमेरिकी डॉलर (USD) के मुक़ाबले कमज़ोर हुआ है. गुरुवार को रुपया 35 पैसे गिरकर 88.20 प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ, और शुक्रवार को सुबह के कारोबार में 7 पैसे की और गिरावट दर्ज की गई, जिससे यह 88.27 पर पहुँच गया. कुछ समय पहले ही रुपया अपने ऐतिहासिक निचले स्तर 88.50 तक पहुँच गया था. यह गिरावट बाज़ार में हलचल मचा रही है, और इसकी वजह कई वैश्विक और घरेलू कारक हैं.

क्यों गिर रहा है हमारा रुपया?
विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये में गिरावट की कई वजहें हैं:

  • डॉलर का बढ़ता दम: अमेरिका से आने वाले बेहतर रोज़गार डेटा ने डॉलर को और मज़बूत किया है. जब अमेरिका की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती है, तो निवेशक डॉलर में ज़्यादा भरोसा दिखाते हैं, जिससे इसकी मांग बढ़ जाती है.
  • ऊंचे कच्चे तेल के दाम: भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक है. जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो हमें आयात के लिए ज़्यादा डॉलर खर्च करने पड़ते हैं, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ता है और यह कमज़ोर होता है 
  • विदेशी निवेश में कमी: भारतीय शेयर बाज़ारों से विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) का लगातार पैसा निकालना भी रुपये की कमज़ोरी का एक बड़ा कारण है. जब विदेशी निवेशक अपना पैसा निकालते हैं, तो डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया गिरता है.
  • भारत का व्यापार घाटा और महंगाई: भारत का बढ़ता व्यापार घाटा (जब आयात, निर्यात से ज़्यादा होता है) और अमेरिकी की तुलना में अधिक महंगाई दर भी रुपये के मूल्य को प्रभावित करती है

आगे क्या हो सकता है?
विशेषज्ञों के अनुसार, रुपया 87.70 के एक महत्वपूर्ण 'सपोर्ट लेवल' पर आ गया है. अगर यह इस स्तर से और नीचे गिरता है, तो आगे यह 87.50 या 87.20 के स्तर तक भी जा सकता है. वहीं, अगर रुपये में कोई सुधार आता है, तो इसे 88.40 के आसपास 'रेज़िस्टेंस' (रोकने वाला स्तर) का सामना करना पड़ सकता है. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) इस उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए बाज़ार में हस्तक्षेप कर रहा है, ताकि रुपये की अस्थिरता को कम किया जा सके. फिर भी, अमेरिकी शुल्कों और आयातक मांग की चिंताओं के कारण रुपया दबाव में रह सकता है.

आपकी जेब पर क्या असर?
जब रुपया कमज़ोर होता है, तो आयातित चीज़ें महंगी हो जाती हैं. इसमें पेट्रोल, डीज़ल, इलेक्ट्रॉनिक सामान और कई कच्चे माल शामिल हैं. इससे देश में महंगाई बढ़ने का डर रहता है हालाँकि, निर्यात करने वाली भारतीय कंपनियों (जैसे आईटी और फार्मा) को इससे फायदा हो सकता है, क्योंकि उन्हें डॉलर में ज़्यादा पैसा मिलेगा.

यह एक जटिल आर्थिक स्थिति है, जिस पर हर निवेशक और नागरिक को ध्यान देना ज़रूरी है.

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