ठंड में क्यों बढ़ जाते हैं किडनी स्टोन पथरी के मामले? वजह जानकर आप आज ही बदल देंगे अपनी आदत

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News India Live, Digital Desk : आजकल ऑफिस के लंच ब्रेक से लेकर सोशल मीडिया की चर्चाओं तक, एक शब्द महिलाओं के बीच खूब सुनाई दे रहा है"सोशल एग फ्रीजिंग"। पहले जहां एग फ्रीजिंग की बात दबी जुबान में होती थी, अब प्रियंका चोपड़ा और एकता कपूर जैसी सेलेब्रिटीज के खुलकर सामने आने के बाद यह टॉपिक आम हो गया है।

लेकिन, यहां एक बड़ा कंफ्यूजन है। बहुत से लोग सोचते हैं कि एग फ्रीजिंग सिर्फ वही कराते हैं जिन्हें कोई बीमारी होती है। पर ऐसा नहीं है। डॉक्टर्स बताते हैं कि एग फ्रीजिंग दो तरह की होती है एक सोशल (Social) और दूसरी क्लिनिकल (Clinical)। सुनने में एक जैसे लगने वाले इन दो शब्दों के मायने और मकसद बिल्कुल अलग हैं।

आइए, IVF एक्सपर्ट्स के नजरिए से इसे आसान भाषा में समझते हैं।

1. सोशल एग फ्रीजिंग: जब यह आपकी "मर्जी" हो (Choice)
"सोशल एग फ्रीजिंग" का मेडिकल जरूरत से कोई लेना-देना नहीं है। यह पूरी तरह से महिला की अपनी पसंद और लाइफस्टाइल का फैसला है।

2. क्लिनिकल एग फ्रीजिंग: जब यह "मजबूरी" हो (Necessity)
यह एग फ्रीजिंग का वो हिस्सा है जो सीधे तौर पर बीमारी या इलाज से जुड़ा है।

तो फर्क क्या है?
एक्सपर्ट्स साफ कहते हैं कि दोनों का प्रोसस (Process) बिल्कुल एक जैसा होता है लैब में इंजेक्शन देना, एग्स निकालना और लिक्विड नाइट्रोजन में जमाना।
फर्क सिर्फ 'मकसद' का है। सोशल एग फ्रीजिंग में आप 'वक्त को रोकने' की कोशिश कर रही हैं ताकि करियर और लाइफ एन्जॉय कर सकें, जबकि क्लिनिकल फ्रीजिंग में आप एक मेडिकल कंडीशन की वजह से अपनी प्रजनन क्षमता (Fertility) को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं।

डॉक्टर की राय:
अगर आप सोशल एग फ्रीजिंग का सोच रही हैं, तो एक्सपर्ट्स का मानना है कि 35 साल से पहले यह करवा लेना सबसे समझदारी वाला फैसला है। क्योंकि एग्स जितने यंग होंगे, भविष्य में सफलता के चांस उतने ही ज्यादा होंगे।

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