झारखंड में बालू के लिए अभी और करना होगा इंतजार? सरकार ने नीलामी पर लगा दिया यह बड़ा ब्रेक

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News India Live, Digital Desk : पिछले काफी समय से राज्य में बालू (Sand) की किल्लत और उसकी आसमान छूती कीमतों ने आम आदमी की कमर तोड़ रखी है। हर किसी के मन में बस एक ही सवाल है"आखिर बालू घाटों की नीलामी (Auction) कब शुरू होगी और कब हमें सस्ता बालू मिलेगा?"

लेकिन अब सरकार की तरफ से जो खबर आ रही है, उसका सीधा मतलब यह है कि आपको अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है। और इसकी वजह है पेसा कानून (PESA Act)

पेसा कानून का पेंच क्या है?

सरकार ने साफ कर दिया है कि जब तक राज्य में पेसा नियमावली (PESA Rules) पूरी तरह लागू नहीं हो जाती, तब तक बालू घाटों की नीलामी नहीं की जाएगी। सुनने में यह देरी लग सकती है, लेकिन इसके पीछे की मंशा बहुत बड़ी है।

दरअसल, पेसा एक्ट का मतलब है—पंचायतों और ग्राम सभाओं को अधिकार देना। झारखंड के कई इलाके 'शेड्यूल एरिया' में आते हैं। सरकार चाहती है कि इन इलाकों में बालू घाटों का जिम्मा बाहर के ठेकेदारों को देने के बजाय, वहां की स्थानीय ग्राम समितियों को दिया जाए।

अब 'गांव की सरकार' होगी पावरफुल

सोचिए, पहले बालू घाटों की नीलामी होती थी और बड़े-बड़े ठेकेदार या माफिया मुनाफा कमाते थे। गांव वालों को सिर्फ धूल और खराब सड़कें मिलती थीं। लेकिन नई व्यवस्था के तहत:

  1. स्थानीय अधिकार: बालू घाटों का संचालन गांव की समिति करेगी।
  2. मुनाफा गांव का: इससे होने वाली कमाई का हिस्सा गांव के विकास में लगेगा।
  3. अवैध खनन पर रोक: जब गांव वाले खुद मालिक होंगे, तो अवैध खनन (Illegal Mining) पर लगाम लगेगी।

आम जनता पर क्या असर पड़ेगा?

फिलहाल के लिए यह खबर थोड़ी निराशाजनक लग सकती है क्योंकि नीलामी में देरी का मतलब है कि बालू की सप्लाई अभी पूरी तरह सामान्य होने में वक्त लगेगा। लेकिन अगर हम लॉन्ग टर्म (Long Term) में देखें, तो यह फैसला झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों के हक में है।

सरकार इस बार कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती। वो चाहती है कि नियम ऐसे बनें कि कोर्ट-कचहरी का चक्कर न लगे और स्थानीय लोगों को रोजगार मिले। तो भईया, अगर घर बनाना है तो थोड़ा सब्र रखिये, क्योंकि सिस्टम बदलने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है!

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