Uttar Pradesh : माहौल बिगाड़ने की बड़ी साजिश? बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर ही तोड़ी गई उनकी मूर्ति

Post

News India Live, Digital Desk : आज 6 दिसंबर है। एक ऐसा दिन जो पूरे भारत के लिए बहुत भावुक और महत्वपूर्ण है। आज के दिन ही हमारे संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर (Baba Saheb Ambedkar) जी का निधन हुआ था, जिसे हम 'महापरिनिर्वाण दिवस' के रूप में मनाते हैं। पूरा देश आज उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है, जगह-जगह फूल चढ़ाए जा रहे हैं।

लेकिन, अफसोस की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें देश की शांति और एकता रास नहीं आती। यूपी से एक ऐसी खबर आई है जिसने इस पावन दिन पर लोगों के दिलों को चोट पहुंचाई है और माहौल में तनाव घोलने की कोशिश की है।

आइए, जानते हैं कि आखिर हुआ क्या है और क्यों हमें ऐसे वक्त में समझदारी से काम लेने की ज़रूरत है।

घटना क्या है? (शर्मनाक करतूत)

मामला उत्तर प्रदेश का है। जहाँ एक तरफ लोग बाबा साहेब को याद कर रहे थे, वहीं कुछ "शरारती तत्वों" (असामाजिक लोग) ने रात के अंधेरे का फायदा उठाकर बाबा साहेब की प्रतिमा को खंडित कर दिया।

ख़बरों के मुताबिक, इन लोगों ने मूर्ति की हाथ की उंगली तोड़ दी है। यह सिर्फ एक पत्थर की मूर्ति को तोड़ने की बात नहीं है, यह एक सोची-समझी साजिश लगती है। क्योंकि उन्हें पता था कि आज (6 दिसंबर) भावनाओं का ज्वार ऊंचा होगा और छोटी सी चिंगारी भी आग लगा सकती है।

साजिश: "फूट डालो और राज करो"

दोस्तों, सोचने वाली बात यह है कि यह घटना किसी आम दिन नहीं, बल्कि ठीक 'महापरिनिर्वाण दिवस' पर ही क्यों हुई?
साफ़ है कि इसका मकसद सिर्फ मूर्ति को नुकसान पहुंचाना नहीं था, बल्कि समाज में नफरत फैलाना और दो समुदायों को आपस में लड़ाना था। यह उन लोगों का काम है जो यूपी के शांतिपूर्ण माहौल में जहर घोलना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि लोग भड़कें, सड़कों पर उतरें और दंगा-फसाद हो।

प्रशासन की मुस्तैदी

गनीमत रही कि जैसे ही सुबह लोगों को इस बात का पता चला, पुलिस तुरंत मौके पर पहुँच गई। पुलिस और प्रशासन ने समझदारी दिखाते हुए हालात को काबू में कर लिया है। अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि:

  1. मूर्ति की मरम्मत तुरंत करवाई जाएगी या नई मूर्ति लगाई जाएगी।
  2. जिन्होंने भी यह घिनौनी हरकत की है, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा और सख्त से सख्त सजा दी जाएगी।

हमें क्या करना चाहिए?

दोस्तों, बाबा साहेब ने हमें कलम और संविधान की ताकत दी है, हिंसा की नहीं। उनका अपमान मूर्ति तोड़ने से नहीं होता, बल्कि उनका अपमान तब होता है जब हम उनके बताए "भाईचारे" के रास्ते को छोड़कर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।

यह वक्त सब्र और संयम का है। अगर हम भड़क गए, तो उन असामाजिक तत्वों की जीत हो जाएगी जो हमें लड़ाना चाहते हैं। गुस्सा आना लाज़मी है, लेकिन उस गुस्से को ताकत बनाकर हमें एकता दिखानी होगी।

--Advertisement--