UP Festivals : सुलतानपुर में दुर्गा पूजा तब होती है शुरू जब हर जगह हो जाता है विसर्जन, क्या है इसका राज़?

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News India Live, Digital Desk: आप ये जानकर हैरान होंगे कि नवरात्र के शुरुआती दिनों में तो पूरे देश में माँ दुर्गा की पूजा और स्थापना ज़ोरों पर होती है, लेकिन सुलतानपुर में यह सब कुछ शांत होने के बाद, ख़ासकर अष्टमी से पूर्णिमा तक असली जश्न शुरू होता है। जब सभी स्थानों पर मूर्तियां विसर्जित हो चुकी होती हैं, तब यहाँ माता की पूजा का आगाज़ होता है।

कौन हैं ये 'बजरंगी' जिनकी देखरेख में होता है ये मेला?

पूरे मेले और पूजा का ज़िम्मा एक ख़ास 'बजरंगी' के कंधे पर होता है। नवरात्रों की शुरुआत के साथ ही, शहर के बीचो-बीच चौक स्थित घंटाघर के ठीक सामने, इन बजरंगी की एक विशाल प्रतिमा ठेलेनुमा गाड़ी पर स्थापित की जाती है। ये 'बजरंगी' दरअसल हनुमान जी का ही एक रूप माने जाते हैं और पूरे त्योहार के दौरान यहीं खड़े रहते हैं।

पंडाल स्थापना से लेकर पूजा तक: बजरंगी की पूरी निगरानी

  • शुरुआत से ही हलचल: नवरात्र के पहले दिन से ही शहर में प्रतिमाएँ स्थापित करने के लिए बड़े-बड़े पंडाल बनाने का काम शुरू हो जाता है। पहले अस्थायी पंडाल बनते हैं, जहाँ कलश और भूमि पूजन जैसी पवित्र रस्में पूरी की जाती हैं। ये प्रक्रिया ही इस बात का संकेत देती है कि जल्द ही यहाँ माता की ख़ूबसूरत प्रतिमाएँ स्थापित होंगी।
  • अष्टमी से पहले तैयारी: अष्टमी से पहले ही, इन पंडालों को बेहद भव्य रूप दिया जाता है। अष्टमी की पूजा के साथ-साथ मूर्तियों को विधिवत विराजमान करने का काम होता है, और इन सबकी पूरी निगरानी 'बजरंगी' ही करते हैं।
  • नित्य पूजा और सुंदरकांड: पूरे आयोजन के दौरान, 'बजरंगी' की प्रतिमा वाली ठेलेनुमा गाड़ी घंटाघर चौक पर ही मौजूद रहती है। हर दिन भक्त और मंडलियाँ यहाँ बजरंगी की विधिवत पूजा और सुंदरकांड का पाठ करते हैं। यह स्थानीय लोगों की अटूट आस्था है कि बजरंगी की कृपा और आशीर्वाद से ही यह आठ से नौ दिन तक चलने वाला इतना बड़ा और भव्य मेला हर साल शांतिपूर्ण और सफलतापूर्वक संपन्न होता है।

विसर्जन की शोभायात्रा में सबसे आगे 'बजरंगी'!

मेले में 'बजरंगी' की ये विशाल प्रतिमा, जिसे ठेलेनुमा गाड़ी पर रखा जाता है, वो घंटाघर चौक तक पहुँचती है। फिर, विसर्जन के दिन, जब माता की प्रतिमाएँ गोमती नदी के किनारे विसर्जन के लिए ले जाई जाती हैं, तो रास्ते में पड़ने वाले दीवानी चौराहे पर 'बजरंगी' की प्रतिमा पहले ही पहुँच जाती है। उनकी देखरेख में ही सारी प्रतिमाएँ नदी के घाट तक पहुँचाई जाती हैं। इस तरह, पिछले 25 सालों से भी ज़्यादा समय से, 'बजरंगी' की निगरानी में ही सुलतानपुर का यह ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव और मेला ख़ुद को संपन्न करता रहा है। मेले के ख़त्म होने पर, 'बजरंगी' की प्रतिमा को योगीवीर स्थित हनुमान मंदिर ले जाया जाता है, जहाँ एक बार फिर महावीर हनुमान की पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना की जाती है।

सुलतानपुर मेले की कुछ ख़ास बातें:

  • कोलकाता जैसा माहौल: सुलतानपुर मेले की एक और ख़ास बात यह है कि यहाँ माता की प्रतिमाएँ कलकत्ता (कोलकाता) की तर्ज़ पर स्थापित की जाती हैं, जो देखने में बहुत भव्य लगती हैं। हर पंडाल में माँ दुर्गा के विभिन्न ख़ूबसूरत स्वरूपों के दर्शन होते हैं।
  • नशा मुक्ति और सेवा भाव: हर पंडाल में वॉलंटियर होते हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी श्रद्धालु को कोई तकलीफ़ न हो। ख़ास बात यह भी है कि इन पंडालों में नशे में धुत किसी व्यक्ति को जाने की इजाज़त नहीं होती, जिससे पूरे मेले का माहौल पवित्र और मर्यादित बना रहता है।
  • प्रसाद वितरण और सांस्कृतिक झलक: शाम होते ही, ये वॉलंटियर और क्षेत्र की महिलाएँ नए-नए रंगीन कपड़ों में सज-धजकर पंडालों में पहुँचती हैं और विधि-विधान से माता की पूजा-अर्चना और आरती करती हैं। इसके अलावा, हर पूजा समिति अपनी सामर्थ्य के अनुसार आने वाले भक्तों के लिए अलग-अलग तरह के प्रसाद का इंतज़ाम करती है – कहीं गरमा-गरम छोला-चावल मिलता है, तो कहीं पूड़ी-हलवा या पूड़ी-सब्ज़ी। साथ ही, पेयजल की भी उचित व्यवस्था रहती है।

सुलतानपुर का यह दुर्गा पूजा महोत्सव भारतीय संस्कृति और धार्मिक सौहार्द की एक अनूठी मिसाल है, जो हमें याद दिलाता है कि आस्था और परंपराएँ कितनी ख़ास हो सकती हैं।

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