बंगाल के इस गांव में डर नहीं, सुकून मिलता है रात में गूंजती है मां काली के घुंघरुओं की आवाज़
News India Live, Digital Desk : भारत की धरती चमत्कारों और आस्था की कहानियों से भरी पड़ी है। हम अक्सर ऐसे मंदिरों के बारे में सुनते हैं जहाँ पत्थर पानी पीते हैं या दीये पानी से जलते हैं। लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, उसकी कहानी थोड़ी अलग और रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
ज़रा सोचिए, आप मंदिर में दर्शन करने जाएं और आपको पता चले कि रात के वक़्त इस मंदिर के भगवान अपनी मूर्ति छोड़कर बाहर 'सैर' पर निकलते हैं? जी हाँ, पश्चिम बंगाल में एक ऐसा ही मंदिर है, जो सदियों से एक गहरे राज़ को समेटे हुए है।
वो मंदिर, जहाँ रात को नहीं रहतीं माता
यह अद्भुत मंदिर पश्चिम बंगाल के नौगांव (Naogaon) इलाके में स्थित है। यहाँ माँ काली की पूजा होती है। स्थानीय लोगों और पुजारियों का ऐसा मानना है कि जब रात गहरी होती है और सन्नाटा छा जाता है, तो माता रानी अपनी मूर्ति (Idol) में नहीं रहतीं। वे वहां से अदृश्य होकर अपने भक्तों का हाल-चाल लेने और उनकी मुसीबतें दूर करने निकल जाती हैं।
गाँव के कई बुज़ुर्ग दावा करते हैं कि उन्होंने रात के सन्नाटे में मंदिर के आसपास पायलों या घुंघरुओं की आवाज़ (Sound of Anklets) सुनी है, जैसे कोई देवी शक्ति वहां पहरा दे रही हो।
अंग्रेजों से जुड़ी है दिलचस्प कहानी (Historical Legend)
इस मंदिर का इतिहास भी कोई कल-परसों का नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पुराना है। कहानी 18वीं सदी की है, जब भारत में अंग्रेजों का राज बढ़ रहा था। किस्सा है राजा कृष्णचंद्र (Raja Krishna Chandra) का। कहा जाता है कि एक बार अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ते हुए राजा कृष्णचंद्र बुरी तरह मुसीबत में फंस गए। हर तरफ से हार नज़दीक दिख रही थी।
तब उन्होंने हताश होकर मां काली की शरण ली। मान्यता है कि राजा की भक्ति देखकर माँ ने न सिर्फ उन्हें दर्शन दिए, बल्कि एक 'दिव्य तलवार' भी सौंपी। उस तलवार की मदद से राजा ने युद्ध जीता। तभी से यहाँ माँ काली को रक्षक और विजय की देवी माना जाता है। यहाँ आज भी वो तलवार एक निशानी के तौर पर पूजी जाती है।
भक्तों से माँ का खास रिश्ता
यहाँ के लोगों के लिए काली माँ कोई पत्थर की मूरत नहीं, बल्कि घर की सदस्य जैसी हैं। जब यहाँ किसी की मन्नत पूरी होती है या कोई बड़ी मुसीबत टल जाती है, तो भक्त अपनी खुशी जाहिर करने के लिए मूर्ति को सिर पर उठाकर मंदिर परिसर में नाचते हैं। ऐसा नज़ारा शायद ही आपको देश के किसी और मंदिर में देखने को मिले।
यहाँ की हवा में एक अलग ही ऊर्जा है। जो लोग यहाँ आते हैं, वे कहते हैं कि माता के दरबार में जो सुकून मिलता है, वो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। यह मंदिर सिर्फ़ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि उस भरोसे का नाम है जो मानता है कि 'कोई है जो ऊपर बैठकर हमारी रक्षा कर रहा है।'
तो अगली बार अगर आप बंगाल की ट्रिप प्लान करें, तो इस रहस्यमय और ऐतिहासिक मंदिर में माथा टेकना न भूलें!
--Advertisement--