Rajasthan BJP : सीएम भजनलाल तक पहुंची बात कार्यकर्ताओं के आंसू और मंत्रियों के टशन ने खड़ी की मुसीबत
News India Live, Digital Desk : राजनीति में कहते हैं कि "सरकार बनाना मुश्किल है, लेकिन उसे चलाना और कार्यकर्ताओं को खुश रखना उससे भी ज्यादा मुश्किल।" आजकल राजस्थान (Rajasthan) में सत्ताधारी पार्टी यानी BJP के अंदर कुछ ऐसा ही माहौल बना हुआ है। सरकार बन गई, 'डबल इंजन' दौड़ रहा है, लेकिन जिन पटरियों पर यह दौड़ रहा है यानी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता (Karyakarta) उनमें कहीं न कहीं दरार पड़ती दिख रही है।
ताज़ा मामला जनसुनवाई (Public Hearing) से जुड़ा है। वही जनसुनवाई, जहाँ आम जनता और पार्टी वर्कर्स अपनी फरियाद लेकर मंत्रियों के पास जाते हैं। लेकिन खबर आ रही है कि कार्यकर्ता खुश होने की बजाय मायूस और गुस्से में बाहर निकल रहे हैं।
आइए, जयपुर के सियासी गलियारों की इस 'अंदरूनी कलह' को आसान भाषा में समझते हैं।
"मंत्री जी सीट पर मिलते ही नहीं!"
जयपुर स्थित बीजेपी प्रदेश कार्यालय में एक रोस्टर (Roster) बना हुआ है। इसके मुताबिक, अलग-अलग मंत्रियों की ड्यूटी लगाई गई है कि वो तय समय पर पार्टी ऑफिस आएंगे और लोगों की समस्याएं सुनेंगे। सुनने में यह सिस्टम बहुत अच्छा लगता है, है न?
लेकिन हकीकत कुछ और बताई जा रही है।
- शिकायत नंबर 1: कई बार मंत्री तय समय पर पहुँचते ही नहीं हैं। दूर-दराज के गांवों से आए कार्यकर्ता घंटों इंतज़ार करते रहते हैं।
- शिकायत नंबर 2: अगर मंत्री आ भी गए, तो वो सिर्फ औपचारिकता पूरी करते हैं। वे कार्यकर्ताओं की बात ध्यान से सुनने की बजाय अफसरों को फ़ोन लगाने या फाइलों में व्यस्त रहते हैं।
- शिकायत नंबर 3: कई बार अचानक प्रोग्राम बदल दिया जाता है और सूचना तक नहीं दी जाती।
कार्यकर्ताओं का दर्द यह है कि "जब हम विपक्ष में थे, तब हम सड़कों पर लाठियां खाते थे। अब जब अपनी सरकार है, तो हमारी सुनवाई ही नहीं हो रही।"
कार्यकर्ताओं की इग्नोरेंस या अफसरों का राज?
एक पुराना दर्द जो हर सरकार में देखने को मिलता है, वो यहाँ भी फूट रहा है— "अफसरशाही का हावी होना।"
कार्यकर्ता आरोप लगा रहे हैं कि मंत्री उनकी चिट्ठी या अर्जी ले तो लेते हैं, लेकिन उस पर एक्शन नहीं होता। अफसर कार्यकर्ताओं की बातों को गंभीरता से नहीं लेते और मंत्री भी उन पर लगाम नहीं कस पा रहे।
इससे पार्टी के वफादार सिपाही खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि मंत्रियों के आस-पास का जो घेरा है, उसने आम वर्कर और नेता के बीच एक दीवार खड़ी कर दी है।
संगठन के माथे पर चिंता की लकीरें
ऐसा नहीं है कि संगठन को इसकी खबर नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर ऊपर तक यह बात पहुँच चुकी है कि जनसुनवाई 'फ्लॉप शो' साबित हो रही है। जब अपने ही लोग नाराज होंगे, तो जनता में क्या संदेश जाएगा?
सूत्रों की मानें तो इस मुद्दे को लेकर सीएम भजनलाल शर्मा और संगठन के बड़े नेता काफी गंभीर हैं। माना जा रहा है कि मंत्रियों को सख्त निर्देश दिए जा सकते हैं कि वे जनसुनवाई को मज़ाक न समझें। "वीआईपी कल्चर" छोड़कर उन्हें कार्यकर्ताओं के साथ ज़मीन पर बैठना होगा।
आगे क्या होगा?
अगर मंत्रियों ने अपना रवैया नहीं सुधारा, तो आने वाले दिनों में यह असंतोष बड़ा रूप ले सकता है। उपचुनाव या निकाय चुनावों में नाराज कार्यकर्ता घर बैठ सकते हैं, जो पार्टी के लिए खतरे की घंटी होगी।
अब देखना यह है कि बीजेपी आलाकमान इस 'नाराजगी' को कैसे दूर करता है। क्या मंत्रियों की क्लास लगेगी, या कार्यकर्ता यूँ ही अपनी अर्जी लेकर भटकते रहेंगे? फिलहाल तो जयपुर के बीजेपी ऑफिस में माहौल थोड़ा गरम ही है!
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