बांग्लादेश का खौफनाक सच खुद को बचाने के लिए फैक्ट्री वालों ने दीपू को भीड़ के हवाले किया? जानें पूरी दास्तां

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News India Live, Digital Desk : इंसानियत कब और कहां दम तोड़ दे, इसका अंदाजा बांग्लादेश की ताजा घटना को देखकर लगाया जा सकता है। कुछ दिन पहले हम सबने एक दिल दहला देने वाली खबर सुनी थी एक हिंदू युवक, दीपू चंद्र दास, जिसे मैमनसिंह में भीड़ ने घेर लिया, मारा और फिर जिंदा जला दिया।तब कहा गया कि उसने 'ईशनिंदा' (धर्म का अपमान) की थी।

लेकिन आज, जब पुलिस और रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) की जांच रिपोर्ट सामने आई है, तो जो सच्चाई बाहर निकली है, वह किसी भी पत्थर दिल इंसान को भी रुला सकती है। सच यह है कि दीपू निर्दोष था और उसे बचाया जा सकता था।

एक झूठा आरोप और 'साजिश' वाली मौत

बांग्लादेश की एलीट फोर्स RAB ने साफ शब्दों में कहा है कि दीपू चंद्र दास के खिलाफ ईशनिंदा का कोई सबूत नहीं मिला है। उन्होंने उसका सोशल मीडिया खंगाला, लोगों से पूछताछ की, लेकिन किसी को नहीं पता कि उसने आखिर ऐसा कहा क्या था? RAB के कमांडर का कहना है "हमने बार-बार पता लगाने की कोशिश की कि उसने किसे क्या कहा, लेकिन कोई चश्मदीद नहीं मिला। यह महज एक अफवाह थी।"

ज़रा सोचिए, एक 25-30 साल का लड़का, जिसके घर पर बीमार पिता और पत्नी उसका इंतजार कर रहे थे, उसे सिर्फ अफवाह के दम पर भीड़ ने नोंच खाया।

"फैक्ट्री ने उसे बलि का बकरा बना दिया?"

सबसे चौंकाने वाली और गुस्से से भर देने वाली बात जो जांच में सामने आई है, वो फैक्ट्री के मैनेजरों का रवैया है।रिपोर्ट्स और RAB के हवाले से खबर है कि जब भीड़ फैक्ट्री के बाहर जमा होकर हंगामा करने लगी, तो वहां मौजूद जिम्मेदारों ने दीपू को बचाने या पुलिस को बुलाने की जगह एक "आसान रास्ता" चुना।

कहा जा रहा है कि फैक्ट्री को भीड़ के गुस्से से बचाने के लिए मैनेजरों ने दीपू से पहले इस्तीफा लिखवाया और फिर उसे गेट से बाहर, उस खूंखार भीड़ के हवाले धक्का दे दिया। मतलब साफ है खुद की चमड़ी और प्रॉपर्टी बचाने के लिए एक इंसान की जान का सौदा कर लिया गया। पुलिस का भी कहना है कि अगर वक्त रहते उन्हें खबर दी जाती, तो शायद आज दीपू जिंदा होता।

10 गिरफ्तार, लेकिन क्या दीपू लौटेगा?

अब जब दुनिया भर में थू-थू हो रही है, तो बांग्लादेश प्रशासन जागा है। अब तक इस मामले में फैक्ट्री मैनेजर समेत करीब 10-12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है  अंतरिम सरकार अब "न्याय" की बात कर रही है। लेकिन सवाल यह है कि जब इंसानियत ही मर चुकी थी, तब ये प्रशासन कहां था?

यह घटना सिर्फ एक 'हत्या' नहीं है, यह एक तमाचा है उस सिस्टम पर जहां अफवाहें कानून से बड़ी हो जाती हैं और एक बेगुनाह आदमी "भीड़तंत्र" की भेंट चढ़ जाता है। दीपू तो चला गया, लेकिन उसकी अधजली लाश हमेशा सवाल पूछेगी  "मेरा कसूर क्या था?"

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