भारत की ऊर्जा का भविष्य: अब परमाणु शक्ति दिखाएगा अपना दम!

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भारत की ऊर्जा का भविष्य: अब परमाणु शक्ति दिखाएगा अपना दम!

सोचिए, भारत जैसे विशाल देश को चलाने के लिए कितनी बिजली चाहिए होगी? हमारी फैक्ट्रियां, हमारे घर, हमारे शहर, सब कुछ बिजली पर ही तो निर्भर है। अभी तक हम बिजली के लिए काफ़ी हद तक कोयले पर निर्भर रहे हैं, जिससे प्रदूषण की समस्या भी बढ़ी है। लेकिन अब लगता है कि सरकार ने भविष्य की ऊर्जा ज़रूरत और साफ-सुथरे पर्यावरण के बीच एक संतुलन बनाने का पक्का इरादा कर लिया है।

एक बहुत बड़ा और मज़बूत कदम उठाते हुए सरकार ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में दशकों से चले आ रहे अपने एकाधिकार को खत्म करने का फैसला किया है। आसान भाषा में कहें तो अब तक भारत में परमाणु बिजली बनाने से लेकर यूरेनियम की खुदाई और प्रोसेसिंग तक का सारा काम सिर्फ सरकारी कंपनियां ही करती थीं। लेकिन अब इस क्षेत्र के दरवाज़े प्राइवेट कंपनियों के लिए भी खोले जा रहे हैं।

क्या है सरकार का बड़ा लक्ष्य?

सरकार का लक्ष्य बहुत महत्त्वाकांक्षी है। आज भारत में परमाणु ऊर्जा से लगभग 8.18 गीगावॉट बिजली बनती है, जिसे 2047 तक बढ़ाकर 100 गीगावॉट तक ले जाने का प्लान है। ये लक्ष्य इतना बड़ा है कि इसे हासिल करने के लिए सरकार ने इस साल के बजट में 'परमाणु ऊर्जा मिशन' की घोषणा भी की है और इसके लिए 20,000 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि भी रखी है। सरकार का यह कदम साफ़ बताता है कि वो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की चुनौती को कितनी गंभीरता से ले रही है।

प्राइवेट सेक्टर क्यों है ज़रूरी?

अब सवाल उठता है कि इस क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों की ज़रूरत क्यों पड़ी? दरअसल, भारत के पास यूरेनियम का भंडार सीमित है, जो भविष्य की मांगों का एक छोटा सा हिस्सा ही पूरा कर सकता है। ऐसे में हमें यूरेनियम बाहर से मंगाना पड़ेगा और उसे प्रोसेस करने की क्षमता भी बढ़ानी होगी। इस काम के लिए बहुत ज़्यादा पैसा, नई टेक्नोलॉजी और तेज़ी से काम करने वाले मैनेजमेंट की ज़रूरत होगी, और यहीं पर प्राइवेट सेक्टर की भूमिका अहम हो जाती है। उनके आने से नई पूंजी आएगी, सप्लाई चेन मज़बूत होगी और प्रोजेक्ट्स को तेज़ी से पूरा करने में मदद मिलेगी।

चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं

हालांकि, यह रास्ता उतना आसान भी नहीं है। इसके लिए सरकार को कई पुराने कानूनों में बदलाव करना होगा, जैसे कि 'परमाणु ऊर्जा अधिनियम', ताकि प्राइवेट कंपनियां भी परमाणु बिजली बना सकें। इसके अलावा, परमाणु हादसों से जुड़े मुआवज़े के कानून को भी सुधारना होगा, ताकि विदेशी कंपनियां बिना डरे भारत में निवेश और टेक्नोलॉजी लाने के लिए तैयार हों।

एक और बड़ी चुनौती है लोगों का भरोसा जीतना। अतीत में जैतापुर और कुडनकुलम जैसी जगहों पर परमाणु प्लांट्स को लेकर काफ़ी विरोध प्रदर्शन हुए हैं। प्राइवेट कंपनियों के आने से लोगों के मन में सुरक्षा को लेकर डर पैदा हो सकता है। इसलिए, यह बहुत ज़रूरी है कि सरकार पूरी पारदर्शिता बरते, लोगों से संवाद करे, पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करे और जिनकी ज़मीन ली जाए, उन्हें उचित मुआवज़ा दे।

सरकार अब छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) जैसी नई टेक्नोलॉजी पर भी ध्यान दे रही है। ये पारंपरिक बड़े रिएक्टर्स के मुकाबले ज़्यादा सुरक्षित और लचीले होते हैं। इन्हें औद्योगिक क्षेत्रों के पास लगाकर उनकी बिजली की ज़रूरतें सीधे पूरी की जा सकती हैं।

यह कदम भारत के लिए एक नए युग की शुरुआत कर सकता है, जहाँ स्वच्छ और भरोसेमंद ऊर्जा देश के आर्थिक विकास को नई रफ़्तार देगी। अगर सब कुछ योजना के अनुसार चला, तो भारत जल्द ही परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया का एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर सकता है।

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