बचपन में मां चली गई थी भरी राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे ने ली कसम, सुनकर सन्न रह गया पूरा देश

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News India Live, Digital Desk :  संसद के शीतकालीन सत्र (Winter Session 2025) में कल रात जो मंज़र देखने को मिला, वह भारतीय राजनीति के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। अक्सर हम राजनेताओं को चीखते-चिल्लाते देखते हैं, लेकिन कल राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्ष के नेता, मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को रोते और बिलखते देखकर पूरा सदन सन्न रह गया। मामला इतना गंभीर था कि अपनी बात मनवाने के लिए 83 साल के इस नेता को 'मां की कसम' खानी पड़ी।

आखिर ऐसा क्या हुआ आधी रात को?
सरकार मनरेगा (MGNREGA) की जगह एक नया कानून 'VB-G-RAM-G' (विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार) पास करवा रही थी। बहस चल रही थी, रात के 12 बज रहे थे, लेकिन विपक्ष इस बिल के सख्त खिलाफ था। इसी बीच जब खड़गे साहब बोलने खड़े हुए, तो उनका गला भर आया।

उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा, "मैं अपनी मां की कसम खाकर कहता हूँ, मैं भारत मां की कसम खाकर कहता हूँ... यह बिल गरीबों के खिलाफ है। मैंने अपनी मां को बहुत बचपन में खो दिया था... मैं दर्द जानता हूँ। आप यह पाप मत कीजिये।"

सोचिए, एक इतना अनुभवी और बुजुर्ग नेता जब अपनी मृत मां की सौगंध खाकर सरकार से विनती करे, तो मामला कितना संजीदा होगा। उनकी आंखों में आंसू और जुबां पर कसम—इसने वहां मौजूद हर शख्स को हिलाकर रख दिया।

क्यों गुस्से और दुःख में हैं खड़गे?
यह सिर्फ भावुकता नहीं थी, इसके पीछे गरीबों की रोज़ी-रोटी का सवाल था। खड़गे साहब और विपक्ष इस नए 'जी-राम जी' बिल का विरोध तीन वजहों से कर रहे हैं:

  1. बापू का अपमान: पुराने नाम (मनरेगा) में 'महात्मा गांधी' जुड़े थे, लेकिन नए नाम (VB-G-RAM-G) से गांधी जी को हटा दिया गया है। खड़गे का कहना है कि सरकार भगवान राम के नाम (G-RAM) का इस्तेमाल कर राजनीति कर रही है और बापू को भुला रही है।
  2. काम की गारंटी ख़त्म? विपक्ष का आरोप है कि पुराने कानून में साल भर काम मांगने का कानूनी हक़ था। नए बिल में सरकार ने 'सीज़नल पॉज़' (Seasonal Pause) डाल दिया है, यानी खेती-बाड़ी के सीजन में (जैसे कटाई के समय) मनरेगा का काम बंद रहेगा। खड़गे ने कहा कि गरीब आदमी खाएगा क्या?
  3. राज्यों पर बोझ: इस बिल में केंद्र सरकार ने राज्यों पर भी खर्चा डाल दिया है। खड़गे का कहना था कि गरीब राज्यों के पास पहले ही पैसा नहीं है, वो मज़दूरों को भुगतान कैसे करेंगे?

"लिख कर रख लो, माफ़ी मांगनी पड़ेगी"
अपने भाषण में खड़गे ने सरकार को बहुत बड़ी चेतावनी दी। उन्होंने मोदी सरकार को पुराने दिन याद दिलाते हुए कहा, "मेरी बात लिख कर रख लीजिये, जैसे आपको तीन काले कृषि कानून (Farm Laws) वापस लेने पड़े थे, वैसे ही एक दिन आपको यह कानून भी वापस लेना पड़ेगा। आज आप ताकत के दम पर पास करा रहे हैं, लेकिन गरीब की हाय आपको लगने नहीं देगी।"

क्या ये लड़ाई सिर्फ़ नाम की है?
सरकार का तर्क है कि नए बिल में काम के दिन 100 से बढ़ाकर 125 किए गए हैं और सिस्टम पारदर्शी (Transparent) होगा। लेकिन खड़गे का डर यह है कि इस "गारंटी" के हटने से मजदूरों का अधिकार, अधिकारियों की 'दया' पर निर्भर हो जाएगा।

देर रात बिल पास तो हो गया, लेकिन खड़गे की वो "मां कसम" वाली ललकार और आंसू अब सोशल मीडिया पर हर किसी के दिल को छू रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं क्या 'विकास' के लिए गांधी जी का नाम मिटाना और गरीबों के हक़ से छेड़छाड़ करना ज़रूरी है?

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