टीम इंडिया की जीत का काला सच क्या हम सिर्फ 2-3 खिलाड़ियों के भरोसे चल रहे हैं?
News India Live, Digital Desk : क्या आप भी भारत की हालिया जीतों को देखकर खुश हैं? होना भी चाहिए, आखिर हमारी टीम जब जीतती है तो दिल खुश हो जाता है। "विराट का कवर ड्राइव", "रोहित का पुल शॉट" या फिर “जसप्रीत बुमराह का वो कातिलाना यॉर्कर” हम इन्ही पलों में खो जाते हैं।
लेकिन, जरा ठहरिए और एक गहरी सांस लीजिए। क्या आपको कभी ऐसा लगा है कि स्कोरबोर्ड पर जो जीत दिख रही है, वो असल में पूरी टीम की जीत नहीं है? बल्कि वो 1-2 खिलाड़ियों का जादू है जिसने पूरी टीम की गलतियों पर पर्दा डाल दिया है? (Individual brilliance papering over cracks)।
आज हम क्रिकेट के तकनीकी शब्दों को छोड़कर, एक फैन के नजरिए से उस सच को खंगालेंगे जिसे अक्सर "मैन ऑफ द मैच" ट्रॉफी के पीछे छुपा दिया जाता है।
1. "हीरो कल्चर" का साइड इफेक्ट (Dependent on Heroes)
हमारी टीम की सबसे बड़ी मुसीबत यही है'व्यक्ति विशेष' पर निर्भरता। पिछले कुछ महीनों के मैचों को उठाकर देख लीजिए। या तो यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal) जैसा कोई युवा तूफ़ान मचा देता है या फिर जसप्रीत बुमराह (Jasprit Bumrah) आकर हारी हुई बाजी पलट देते हैं।
पर बाकी टीम का क्या? सवाल ये है कि जब ये "हीरो" फेल होते हैं, तब क्या होता है? हमने कई बार देखा है कि टॉप के 2 विकेट गिरते ही पूरा लाइन-अप ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगता है। यह 'Team Effort' नहीं, बल्कि 'Individual Rescue Act' ज्यादा लगता है।
2. मिडिल ऑर्डर की लुका-छिपी (Middle Order Mystery)
अगर ओपनर्स ने 100 रन की साझेदारी कर दी, तो हम रिलैक्स हो जाते हैं। लेकिन जैसे ही शुरूआती झटके लगते हैं, हमारा मिडिल ऑर्डर (Middle Order) दबाव में बिखरने लगता है। श्रेयस अय्यर, केएल राहुल या ऋषभ पंत के कुछ शानदार कैमियो को छोड़ दें, तो "निरंतरता" (Consistency) की बहुत बड़ी कमी दिखाई दे रही है। इन 'दरारों' को जीत की खुशी में अनदेखा किया जा रहा है, लेकिन बड़े नॉकआउट मैचों में यही दरारें खड्डा बन जाती हैं।
3. बुमराह के बाद कौन? (Who After Boom?)
जसप्रीत बुमराह एक लेजेंड हैं, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन वो इंसान हैं, मशीन नहीं। हम उनकी फिटनेस और फॉर्म पर इतना निर्भर हो चुके हैं कि उनके बिना टीम की बॉलिंग आधी-अधूरी लगती है। दूसरे छोर से सपोर्ट की कमी अक्सर हमारे लिए सरदर्द बन जाती है। अगर हम वर्ल्ड क्लास टीम (World Class Team) बनने का दावा करते हैं, तो हमारे पास 4-5 मैच विनर गेंदबाज होने चाहिए, न कि सिर्फ एक संकटमोचक।
4. क्या यह "लंबे समय" तक चलेगा? (Can It Last?)
सबसे बड़ा और डरावना सवाल कब तक?
कोई भी टीम सिर्फ 2 या 3 खिलाड़ियों के कंधों पर चढ़कर लंबा सफर तय नहीं कर सकती। चैंपियंस ट्रॉफी या वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट्स में 11 के 11 खिलाड़ियों का चलना जरूरी होता है।
अभी भारतीय टीम ट्रांजिशन (Transition) के दौर से गुजर रही है। पुराने शेर धीरे-धीरे रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहे हैं और नए अभी पूरी तरह से सेट नहीं हैं। ऐसे नाजुक वक्त में अगर हम सिर्फ "Indivudal Performances" (व्यक्तिगत प्रदर्शन) से खुश होकर अपनी कमजोरियों को नजरअंदाज करेंगे, तो आने वाला वक्त काफी मुश्किल हो सकता है।
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