क्रिसमस की खुशियों में नफरत का रंग? थरूर ने बीजेपी को क्यों याद दिलाई महाभारत और धृतराष्ट्र की कहानी?

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News India Live, Digital Desk : दिसंबर का महीना आते ही हर तरफ त्योहारों की रौनक दिखने लगती है। क्रिसमस की धूम होती है, लोग एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं। लेकिन इस बार देश के कुछ हिस्सों से आती विवादों की खबरों ने त्यौहार के माहौल में थोड़ी कड़वाहट घोल दी है। इसी बीच, कांग्रेस सांसद शशि थरूर का एक बयान सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है, जिसमें उन्होंने महाभारत का उदाहरण देकर सीधे सरकार पर निशाना साधा है।

थरूर के मन में क्या दर्द है?
अक्सर अपनी अंग्रेजी और भारी-भरकम शब्दों के लिए जाने जाने वाले शशि थरूर इस बार बेहद गंभीर और थोड़े दुखी नजर आए। उन्होंने उन घटनाओं का ज़िक्र किया जहाँ कथित तौर पर क्रिसमस के आयोजनों में बाधा डाली गई या लोगों के साथ बदसलूकी हुई। थरूर का कहना है कि जब देश में ऐसी बातें होती हैं, तो इससे पूरी दुनिया में हमारी 'सबको साथ लेकर चलने' वाली छवि खराब होती है।

महाभारत और धृतराष्ट्र की मिसाल
थरूर ने बीजेपी और सरकार पर हमला बोलते हुए इतिहास और पौराणिक कथाओं का सहारा लिया। उन्होंने धृतराष्ट्र का ज़िक्र करते हुए कहा कि जब सभा में कुछ गलत हो रहा था, तब राजा का मौन रहना ही सबसे बड़ा अपराध था। उन्होंने संकेत दिया कि अगर देश में धर्म के नाम पर नफरत फैल रही है और सत्ता में बैठे लोग चुप्पी साधे हुए हैं, तो इतिहास उन्हें उसी नज़र से देखेगा जैसे धृतराष्ट्र को देखता है।

उनका इशारा साफ़ है—सिर्फ चुप्पी काफी नहीं है, बल्कि नेतृत्व को खड़े होकर यह कहना चाहिए कि ऐसी घटनाओं के लिए भारत में कोई जगह नहीं है।

लोकतंत्र और भाईचारे पर सवाल
शशि थरूर का यह सवाल सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह हम सभी के लिए सोचने वाली बात है। हमारा देश अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। दिवाली हो, ईद हो या क्रिसमस, हमने हमेशा मिलकर जश्न मनाया है। ऐसे में किसी खास समुदाय के त्यौहार को निशाना बनाना आखिर हमें कहाँ ले जा रहा है?

थरूर की यह अपील सिर्फ बीजेपी के लिए नहीं, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति के लिए है जो मौन रहकर अन्याय को सह लेता है। उनका मानना है कि सरकार को न केवल इन घटनाओं की निंदा करनी चाहिए, बल्कि उन पर लगाम भी लगानी चाहिए ताकि हर भारतीय बिना डरे अपना त्यौहार मना सके।

आगे क्या?
राजनीति अपनी जगह है, लेकिन समाज के ताने-बाने को बनाए रखना सबकी ज़िम्मेदारी है। क्या हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकते हैं जहाँ कोई अपना धर्म मानने या त्यौहार मनाने से डरे? थरूर की बात कड़वी हो सकती है, लेकिन लोकतंत्र में ऐसे सवाल पूछे जाना बहुत ज़रूरी है।

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