ममता बनर्जी के लिए मुश्किलों भरा बंगाल हुमायूं कबीर समेत वो 3 नाम, जो बढ़ा रहे हैं टीएमसी का सियासी पारा
News India Live, Digital Desk : पश्चिम बंगाल की राजनीति को अगर आप गौर से देखें, तो वहाँ शांति की गुंजाइश अक्सर कम ही रहती है। लेकिन इस बार जो 'तपन' महसूस हो रही है, वो विपक्ष की तरफ से नहीं, बल्कि ममता बनर्जी की अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के भीतर से आ रही है। हाल के घटनाक्रम बता रहे हैं कि सब कुछ वैसा नहीं है जैसा ऊपर से दिखाई दे रहा है। खास तौर पर पार्टी के कद्दावर नेता हुमायूं कबीर ने जो तेवर दिखाए हैं, उसने तृणमूल नेतृत्व की रातों की नींद उड़ा दी है।
कौन हैं हुमायूं कबीर और मामला क्या है?
हुमायूं कबीर कोई साधारण नाम नहीं हैं; वह अपने बेबाक और कई बार विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। भरतपुर के इस विधायक ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ एक तरह से खुला मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सीधे तौर पर ममता कैबिनेट के बड़े चेहरों पर सवाल उठाए हैं। उनके साथ-साथ दो और मुस्लिम नेताओं की बयानबाजी ने राज्य के सियासी तापमान को इतना बढ़ा दिया है कि चर्चाएं अब 'अंदरूनी कलह' से आगे निकल चुकी हैं।
सिर्फ हुमायूं ही नहीं, और भी हैं साथ
हुमायूं कबीर के अलावा सिद्दीकुल्लाह चौधरी जैसे नाम भी अब अपनी बातें खुलकर रख रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि ये नेता राज्य के प्रशासनिक कामकाज और खास तौर पर मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों को लेकर अपनी ही सरकार के रवैये से नाखुश हैं। जब कोई भी बड़ा वोट बैंक वाला नेता सार्वजनिक मंच से नाराजगी जाहिर करता है, तो इसका असर सीधे चुनावों पर पड़ता है। ममता दीदी के लिए मुश्किल यह है कि ये वो चेहरे हैं, जो जमीन पर भारी जनाधार रखते हैं।
ममता बनर्जी के लिए बढ़ती टेंशन
ममता बनर्जी ने सालों से अपनी पार्टी को एक लोहे की मुट्ठी से बांध कर रखा है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि कुछ परतें उधड़ रही हैं। हुमायूं कबीर ने जिस तरह से फिरहाद हकीम जैसे बड़े नेताओं पर निशाना साधा है, वो पार्टी की अनुशासन वाली छवि को चोट पहुँचाता है। विपक्ष भी इस स्थिति को हाथ से नहीं जाने देना चाहता और लगातार तंज कस रहा है कि "टीएमसी अब ढहने वाला घर बन गई है।"
अंदर की बात या सोची-समझी रणनीति?
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ये सिर्फ एक बगावत नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर अपना कद बढ़ाने और अपनी मांगों को मनवाने का एक जरिया है। हुमायूं कबीर जानते हैं कि आने वाले दिनों में उनकी अहमियत क्या है, और शायद यही वजह है कि उन्होंने अब 'चुप' न रहने का फैसला किया है।
आगे का रास्ता क्या?
तृणमूल नेतृत्व के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती इन नाराज नेताओं को शांत करने की है। क्या ममता बनर्जी कोई सख्त एक्शन लेंगी? या फिर बीच का रास्ता निकालकर इन बड़े नेताओं को मनाया जाएगा? सवाल कई हैं, लेकिन एक बात साफ है पश्चिम बंगाल में 'अंदर की आग' फिलहाल शांत होती नहीं दिख रही।
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