Tejashwi Yadav Bungalow Row : एक बंगले को बचाने के चक्कर में घर ही छिन गया ,जानिए कैसे तेजस्वी की वजह से लालू राबड़ी पर गिर गई गाज
News India Live, Digital Desk : सियासत में अक्सर दांव उल्टा पड़ जाता है, लेकिन बिहार में जो हुआ है, वो 'मिसाल' बन गया है। इसे आप इत्तेफाक कहें या अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना", लेकिन सच्चाई यही है। पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) अपनी एक कुर्सी और बंगले की लड़ाई लड़ने कोर्ट गए थे, लेकिन कोर्ट ने बदले में ऐसा फैसला सुना दिया जिसने सिर्फ तेजस्वी नहीं, बल्कि उनके पिता लालू यादव, माता राबड़ी देवी और हम सबके 'मांझी जी' की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
मामला थोड़ा पुराना और दिलचस्प है, जो एक बार फिर चर्चा में है। आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि आखिर तेजस्वी की किस 'जिद' ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से उनके आजीवन बंगले (Lifetime Bungalow) का सुख छीन लिया।
क्या था वो केस जिसने सब बदल दिया?
जब बिहार में सरकार बदली और तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री पद से हट गए, तो उनसे उनका सरकारी बंगला (5, देशरत्न मार्ग) खाली करने को कहा गया। तेजस्वी को यह नागवार गुजरा। उन्हें लगा कि विपक्ष का नेता (Leader of Opposition) होने के नाते वो उस बंगले के हकदार हैं।
इस एक बंगले को बचाने के लिए तेजस्वी यादव पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) पहुँच गए। उन्होंने तर्क दिया कि दूसरे मंत्रियों को भी तो बंगले मिले हैं, फिर मुझसे ही क्यों खाली करवाया जा रहा है? बस यहीं उनसे चूक हो गई।
कोर्ट ने खोद डाली पुरानी फाइलें
जब मामला हाईकोर्ट की डबल बेंच के पास पहुंचा, तो जजों ने सिर्फ तेजस्वी की अर्जी नहीं देखी, बल्कि यह भी देखा कि बिहार में सरकारी बंगले आखिर बांटे किस नियम से जा रहे हैं?
कोर्ट की नजर उस नियम पर पड़ी जिसके तहत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर (Lifetime) के लिए सरकारी बंगला दिया जाता था।
हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा"आखिर पूर्व मुख्यमंत्रियों को ताउम्र बंगला क्यों मिलना चाहिए? यह तो जनता के पैसे की बर्बादी है।"
"हम तो चले थे हक मांगने..." (The Big Side Effect)
तेजस्वी तो अपना बंगला बचाने गए थे, लेकिन कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उस कानून को ही रद्द कर दिया जो पूर्व सीएम को लाइफटाइम बंगले की गारंटी देता था।
कोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद वो भी एक आम नागरिक है, उसे जीवन भर सरकारी खर्चे पर महल जैसा घर देना सही नहीं है।
इस एक फैसले की चपेट में कौन-कौन आया?
- लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी: जो सालों से सरकारी बंगले में रह रहे थे।
- जीतन राम मांझी: जिन्होंने सीएम पद से हटने के बाद भी बड़ा बंगला अपने पास रखा था।
- जगन्नाथ मिश्र: उस समय के अन्य पूर्व सीएम भी इसके दायरे में आ गए।
अब क्या होगा?
इस फैसले का मतलब यह था कि बिहार में अब "पूर्व मुख्यमंत्री" का टैग लगाकर आप सरकारी हवेली में बुढ़ापा नहीं काट सकते। हालांकि, सुरक्षा कारणों (Z+ Security) से राबड़ी देवी को बंगला मिला हुआ है, लेकिन 'आजीवन आवास' वाला नियम अब खत्म हो चुका है।
इसे ही कहते हैं "गए थे नमाज बख्शवाने, रोजे गले पड़ गए!" तेजस्वी की एक कानूनी लड़ाई ने अनजाने में वीआईपी कल्चर पर बड़ा हथौड़ा चला दिया। खैर, जनता के लिए तो यह फैसला अच्छी खबर थी, लेकिन नेताओं के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं।
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