चीन को झटका! कंगाल पाकिस्तान ने अब अमेरिका को बेचा बलू-चिस्तान? 50 करोड़ डॉलर की 'डील' से मचा हड़कंप

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कंगाल हो चुका पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अब कुछ भी करने को तैयार है। कभी वो चीन के आगे हाथ फैलाता है, तो कभी IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) के दरवाज़े पर जाकर गिड़गिड़ाता है। लेकिन इस बार पाकिस्तान ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने न सिर्फ उसके 'सदाबहार दोस्त' चीन के कान खड़े कर दिए हैं, बल्कि पूरी दुनिया में एक नई बहस छेड़ दी है।

ख़बरों के मुताबिक, पाकिस्तान ने अपने सबसे अमीर और सबसे परेशान प्रांत, बलूचिस्तान के कीमती खनिजों (minerals) का सौदा एक अमेरिकी कंपनी के साथ कर लिया है।

क्या है यह 50 करोड़ डॉलर की 'खुफिया डील'?

यह कोई छोटी-मोटी डील नहीं है। पाकिस्तान सरकार ने अमेरिकी कंपनी 'गो-गोल्ड माइनिंग' (Go Gold Mining) के साथ 50 करोड़ डॉलर (यानी करीब 4,000 करोड़ भारतीय रुपये) का एक बड़ा समझौता किया है। इस डील के तहत, यह अमेरिकी कंपनी अब बलूचिस्तान के चागई ज़िले में सोने और तांबे जैसी कीमती धातुओं की खुदाई करेगी।

चागई वही इलाका है जहाँ पाकिस्तान ने अपना एटम बम का परीक्षण किया था और यह कुदरती दौलत से भरा पड़ा है।

चीन क्यों परेशान है इस डील से?

अब सवाल यह उठता है कि इस डील से चीन को क्या मिर्ची लगी? इसके पीछे बहुत बड़ी वजह है।

  1. CPEC का 'दिल' है बलूचिस्तान: चीन पाकिस्तान में CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) नाम का एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट चला रहा है, जिसका सबसे अहम हिस्सा बलूचिस्तान का ग्वादर पोर्ट है। चीन को लगता था कि बलूचिस्तान के सारे संसाधनों पर सिर्फ उसी का हक है।
  2. अमेरिका की  'एंट्री': पाकिस्तान का एक अमेरिकी कंपनी के साथ इतनी बड़ी डील करना चीन के लिए एक बड़ा झटका है। इसका मतलब है कि अब चीन के सबसे बड़े दुश्मन अमेरिका की बलूचिस्तान जैसे अहम इलाके में सीधी-सीधी एंट्री हो गई है।
  3. क्या पाकिस्तान पाला बदल रहा है?: इस डील के बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या कंगाल पाकिस्तान अब धीरे-धीरे चीन के चंगुल से निकलकर वापस अमेरिका के खेमे में जा रहा है?

बलूचिस्तान के लोग क्यों गुस्से में हैं?

इस डील से बलूचिस्तान के लोग बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। बलोच नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तानी फ़ौज और सरकार हमेशा से उनके संसाधनों को लूटकर चीन और दूसरे देशों को बेचती रही है और बदले में उन्हें सिर्फ गरीबी और ज़ुल्म मिला है। उनका कहना है कि यह डील भी उसी लूट का एक नया हिस्सा है।

तो कुल मिलाकर:
यह डील सिर्फ एक कारोबारी समझौता नहीं है। यह एक बड़ी जियो-पॉलिटिकल (भू-राजनीतिक) चाल है, जिससे पाकिस्तान ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं - एक तरफ अपनी डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए डॉलर कमाए हैं, तो दूसरी तरफ चीन को यह पैगाम दिया है कि वह पूरी तरह से उस पर निर्भर नहीं है। अब देखना यह होगा कि चीन इस 'धोखे' का जवाब कैसे देता है।

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