पीएम आवास योजना में करोड़ों का घोटाला कैग की रिपोर्ट ने यूपी में खोला धांधली का राज

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News India Live, Digital Desk : उत्तर प्रदेश में गरीबों के लिए बने प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) में बड़े पैमाने पर धांधली का खुलासा हुआ है. कैग (Comptroller and Auditor General) की हालिया रिपोर्ट ने सरकारी पैसे के बेजा इस्तेमाल और अपात्र लोगों को फायदा पहुंचाने की परतें खोल दी हैं. रिपोर्ट बताती है कि करोड़ों रुपये ऐसे लोगों को दे दिए गए, जो इस योजना के हकदार ही नहीं थे.

तो क्या है पूरा मामला?

कैग की जांच में पता चला कि योजना के तहत 9.52 करोड़ रुपये 1,838 ऐसे लाभार्थियों को दिए गए, जो इसके पात्र नहीं थे. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से 2.62 करोड़ रुपये आज भी वसूल नहीं किए जा सके हैं. कई मामलों में तो जिन लोगों के पास पहले से अच्छे मकान थे या जो सरकारी नौकरी में थे, उन्हें भी इस योजना का लाभ दे दिया गया. 

"UNKNOWN" के नाम पर लाखों का खेल

रिपोर्ट में एक और बड़ा खुलासा हुआ है. SECC (सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना) के आंकड़ों में 'UNKNOWN' (अज्ञात) नाम का फायदा उठाकर 3,354 आवासों में ₹50.28 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई. इसका मतलब है कि फर्जी नाम या एंट्री का इस्तेमाल कर लाखों रुपये इधर-उधर किए गए. इसके अलावा, 159 लाभार्थियों के लिए आए ₹86.20 लाख रुपये साइबर धोखाधड़ी के जरिए दूसरे खातों में चले गए. यानी हकदारों का पैसा किसी और की जेब में पहुंच गया. 

धीरे मिली मदद, कईयों को तो मिली ही नहीं!

सिर्फ अपात्रों को ही नहीं, असली हकदारों को भी परेशानी झेलनी पड़ी. कैग ने बताया कि 79% लाभार्थियों को पहली किस्त मिलने में सात कार्य दिवसों से ज्यादा की देरी हुई. इतना ही नहीं, अगस्त 2024 तक 11,031 लाभार्थियों को मिलने वाली ₹20.18 करोड़ रुपये की सहायता अभी तक वितरित नहीं की गई है, जिस पर सवाल खड़े किए गए हैं. [

वित्तीय हिसाब-किताब में भी गड़बड़

2017 से 2023 के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने इस योजना पर कुल ₹40,231 करोड़ रुपये खर्च किए. इसमें से ₹37,984 करोड़ रुपये मकान बनाने में और ₹157 करोड़ रुपये प्रशासनिक खर्च में लगे. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि कम प्रशासनिक खर्च की वजह से राज्य को केंद्र सरकार से ₹357 करोड़ रुपये कम मिले.

नाम जोड़ने-हटाने में मनमानी

कैग की रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2016-17 से 2022-23 के दौरान यूपी में 34.71 लाख PMAY-G मकानों को मंजूरी मिली, जिसमें से मार्च 2024 तक 34.18 लाख (98.48%) मकान पूरे हो गए. लेकिन लाभार्थियों की पहचान में गंभीर खामियां मिलीं. मई 2016 में जारी शुरुआती सूची के बाद जुलाई 2017 में दोबारा सर्वे किया गया, फिर भी बड़ी संख्या में असली हकदार 'स्थायी प्रतीक्षा सूची' से बाहर रह गए. कैग का मानना है कि यह सब आंकड़ों की गड़बड़ी या गलत डाटा संग्रह के कारण हुआ. कुछ जगहों पर तो प्राथमिकता सूची की अनदेखी कर मनमानी तरीके से लाभार्थियों का चयन किया गया.

कुल मिलाकर, कैग की यह रिपोर्ट पीएम आवास योजना-ग्रामीण में योजनाबद्ध तरीके से काम न करने और निगरानी में कमी की ओर इशारा करती है, जिसका सीधा असर उन गरीब परिवारों पर पड़ा है, जो अपने पक्के आशियाने का सपना देख रहे हैं. यूपी आवास योजना रिपोर्ट, कैग ने खोली पोल, आवास योजना पारदर्शिता

 

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