Rice Import Deal : यह तो सरासर पैसे की बर्बादी है भारत से सीधे नहीं, दुबई से महंगा चावल क्यों खरीद रहा है बांग्लादेश?

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News India Live, Digital Desk : Rice Import Deal : ऐसे समय में जब बांग्लादेश खाद्य संकट और बढ़ती महंगाई की चुनौतियों से जूझ रहा है, उसकी अपनी सरकार की एक अजीबोगरीब खरीदारी नीति ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है। मामला इतना हैरान करने वाला है कि अर्थशास्त्री और एक्सपर्ट्स इसे सीधे-सीधे "सरकारी खजाने की बर्बादी" बता रहे हैं।

मामला जुड़ा है चावल के आयात से। बांग्लादेश अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में चावल का आयात करता है, और इसका सबसे बड़ा स्रोत हमेशा से पड़ोसी देश भारत रहा है। लेकिन इस बार, बांग्लादेश की सरकार भारत से सीधे चावल खरीदने की बजाय दुबई की एक कंपनी के जरिए वही भारतीय चावल खरीद रही है, और वह भी काफी ऊंची कीमत पर

क्या है यह पूरा 'गोलमाल'?

  • डील किसके साथ: बांग्लादेश के खाद्य मंत्रालय ने हाल ही में दुबई की एक कंपनी 'AGROCROP INTERNATIONAL FZE' से 50,000 टन उबला चावल खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
  • चावल कहां का: irony यह है कि यह चावल है तो 'मेड इन इंडिया' ही, जिसे दुबई की यह कंपनी भारत से खरीदकर बांग्लादेश को बेचेगी।
  • कीमत का खेल: बांग्लादेश इस चावल के लिए दुबई की कंपनी को $507.60 प्रति टन की दर से भुगतान करेगा।
  • भारत से सीधी खरीद होती तो?: वहीं, दूसरी ओर, भारत की ही एक कंपनी, 'बाघिया एक्सपोर्ट्स लिमिटेड', ने बांग्लादेश को $469 प्रति टन की दर से चावल देने की पेशकश की थी।

सीधे शब्दों में कहें तो, बांग्लादेश सरकार अगर भारत की कंपनी से सीधे चावल खरीदती, तो उसे प्रति टन लगभग $38.60 की बचत होती। 50,000 टन के हिसाब से यह रकम लाखों डॉलर में पहुंच जाती है।

एक्सपर्ट्स क्यों उठा रहे हैं सवाल?

इस अटपटी डील पर बांग्लादेश के खाद्य और कृषि विशेषज्ञों ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है:

  1. पैसे की सीधी बर्बादी: जब भारत सरकार खुद बांग्लादेश को सीधे चावल निर्यात करने के लिए तैयार है और भारतीय कंपनियां कम कीमत पर आपूर्ति कर सकती हैं, तो फिर किसी तीसरे देश (दुबई) के बिचौलिए को शामिल करके उसे अतिरिक्त पैसा क्यों दिया जा रहा है?
  2. गुणवत्ता और समय पर डिलीवरी का खतरा: विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरे पक्ष के माध्यम से खरीदारी करने में चावल की गुणवत्ता और समय पर डिलीवरी की कोई गारंटी नहीं होती। इससे देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
  3. भ्रष्टाचार की आशंका: कुछ एक्सपर्ट्स ने इस डील में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने की भी आशंका जताई है। उनका सवाल है कि आखिर इस बिचौलिए को फायदा पहुंचाने के पीछे किसका हाथ है?

यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार पर महंगाई को काबू करने और विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने का भारी दबाव है। ऐसे में, सरकारी खजाने से की जा रही यह 'फिजूलखर्ची' निश्चित रूप से उनकी सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत बन सकती है।

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