Punjab Politics : ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने खड़ी की नई मुसीबत भरी मीटिंग में इस्तीफे की पेशकश से सन्न रह गए अकाली लीडर

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News India Live, Digital Desk : पंजाब की सियासत और 'पंथक राजनीति' में कब क्या हो जाए, इसका अंदाज़ा लगाना बड़े-बड़े पंडितों के बस की बात नहीं है। शिरोमणि अकाली दल (SAD) वैसे ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है, और अब बगावती सुरों के बीच खड़े हुए नए गुट 'शिरोमणि अकाली दल (पुनर्जीत)' (SAD Punar Surjeet/Sudhar Lehar) से एक बहुत बड़ी ख़बर सामने आई है।

इस गुट का प्रमुख चेहरा माने जाने वाले और पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह (Giani Harpreet Singh) ने अचानक एक ऐसा दांव चल दिया है, जिसने सबको चौंका दिया है। खबर है कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश (Resignation Offer) कर दी है।

मीटिंग में क्या हुआ?

मामला जालंधर (Jalandhar) का है, जहां 'शिरोमणि अकाली दल (पुनर्जीत)' की एक अहम बैठक चल रही थी। एजेंडा था पार्टी को कैसे मजबूत किया जाए और एसकेएम (संयुक्त किसान मोर्चा) जैसे मुद्दों पर आगे की रणनीति क्या हो। सब कुछ सामान्य चल रहा था। तभी, ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने माइक संभाला और भारी मन से कहा कि वो 'पंथक एकता' (Panthic Unity) के लिए अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार हैं।

उनके इस ऐलान के बाद मीटिंग हॉल में सन्नाटा पसर गया। वहां मौजूद अकाली नेताओं (जैसे प्रेम सिंह चंदूमाजरा और अन्य) के तो होश ही उड़ गए। किसी ने नहीं सोचा था कि जिस शख्स के नाम पर वे नया संगठन खड़ा कर रहे हैं, वही कप्तानी छोड़ने की बात कर देगा।

इस्तीफे के पीछे की असली वजह?

अब सवाल यह है कि ज्ञानी जी ने ऐसा क्यों कहा? क्या वो नाराज हैं? या फिर कोई सियासी 'मास्टरस्ट्रोक' है?
सूत्रों की मानें तो, ज्ञानी हरप्रीत सिंह का कहना है कि अकाली दल बंटा हुआ है। एक तरफ सुखबीर सिंह बादल का गुट है, दूसरी तरफ बागी गुट है। इससे सिख समुदाय (Sikh Panth) को नुकसान हो रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि अगर उनके 'साइड' होने से अकाली दल फिर से एक हो सकता है और सिखों की आवाज़ बुलंद हो सकती है, तो वो अपना पद अभी छोड़ने को तैयार हैं।

मतलब साफ़ है, वो यह सन्देश देना चाहते हैं कि उन्हें 'कुर्सी' का लालच नहीं है, बल्कि वो सिर्फ कौम की सेवा करना चाहते हैं। हालांकि, दबी जुबान में यह भी चर्चा है कि संगठन को लेकर कुछ नेताओं में आपसी मतभेद चल रहे थे, जिससे ज्ञानी जी थोड़े आहत थे।

क्या इस्तीफा मंजूर हुआ?

जैसे ही उन्होंने इस्तीफे की बात कही, मंच पर मौजूद सीनियर नेताओं ने तुरंत हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा— "नहीं जत्थेदार जी, हमें आपका ही नेतृत्व चाहिए।" कार्यकर्ताओं ने नारेबाज़ी शुरू कर दी। फिलहाल के लिए नेताओं ने उन्हें मना लिया है और इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है।

लेकिन दोस्तों, राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं। ज्ञानी हरप्रीत सिंह का यह कदम सुखबीर बादल कैंप (Badal Camp) पर भी दबाव बनाने का तरीका हो सकता है। यह 'इमोशनल कार्ड' कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए भी हो सकता है।

अब देखना यह है कि इस इस्तीफे वाले ड्रामे के बाद अकाली दल के दोनों गुटों में 'एका' होता है या दूरियां और बढ़ जाती हैं। पंजाब की राजनीति के लिए आने वाला हफ्ता बेहद दिलचस्प होने वाला है।

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