बुढ़ापे की लाठी बनेगी पेंशन? 1000 रुपये वाली पेंशन पर 2025 में आ सकती है सबसे बड़ी खुशखबरी!
पूरी ज़िंदगी किसी कंपनी में मेहनत और ईमानदारी से काम करने के बाद जब एक कर्मचारी रिटायर होता है, तो उसकी सबसे बड़ी उम्मीद होती है उसकी पेंशन। यही वो सहारा है जिसके भरोसे वह अपना बुढ़ापा सम्मान के साथ गुज़ारने का सपना देखता है। लेकिन सोचिए, क्या आज के महंगाई के ज़माने में 1000 या 2000 रुपये महीने की पेंशन से गुज़ारा संभव है?
यह सवाल भारत के उन 75 लाख से ज़्यादा EPS-95 पेंशनर्स का है जो सालों से अपनी पेंशन बढ़ाने की गुहार लगा रहे हैं। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि उनकी तपस्या सफल हो सकती है और साल 2025 उनके लिए उम्मीद की एक नई किरण लेकर आ सकता है।
क्या हैं वो 2 बड़ी उम्मीदें जो 2025 में पूरी हो सकती हैं?
1. न्यूनतम पेंशन में होगी ऐतिहासिक बढ़ोतरी?
यह इस पूरे आंदोलन की सबसे बड़ी और सबसे ज़रूरी मांग है। अभी न्यूनतम पेंशन सिर्फ ₹1,000 प्रति माह है, जो किसी मज़ाक से कम नहीं। पेंशनर्स संगठन लगातार यह मांग कर रहे हैं कि इसे बढ़ाकर ₹7,500 प्रति माह किया जाए और साथ में महंगाई भत्ता (DA) भी जोड़ा जाए।
अब तक सरकार इस पर विचार कर रही थी, लेकिन 2025 में इस पर अंतिम फैसला आने की प्रबल संभावना है। अगर सरकार यह मांग मान लेती है, तो यह करोड़ों पेंशनर्स के जीवन में एक क्रांतिकारी बदलाव लाएगा। यह सिर्फ पेंशन में बढ़ोतरी नहीं होगी, यह उनके आत्म-सम्मान की जीत होगी।
2. मुफ़्त इलाज की सुविधा का तोहफा
रिटायरमेंट के बाद शरीर कमज़ोर हो जाता है और बीमारियों पर खर्च बढ़ जाता है। पेंशन का एक बड़ा हिस्सा दवाइयों और डॉक्टर की फीस में ही चला जाता है। इसी को देखते हुए, पेंशनर्स की दूसरी बड़ी मांग है कि उन्हें और उनके जीवनसाथी को आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ़्त इलाज की सुविधा दी जाए।
अगर 2025 में सरकार पेंशन बढ़ाने के साथ-साथ यह स्वास्थ्य सुविधा भी दे देती है, तो यह पेंशनर्स के लिए 'सोने पर सुहागा' जैसा होगा। इससे उनकी एक बहुत बड़ी चिंता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
क्यों है 2025 इतना महत्वपूर्ण?
पेंशनर्स का संघर्ष अब रंग लाता दिख रहा है। देश की कई अदालतों ने भी माना है कि पेंशन की रकम सम्मानजनक होनी चाहिए। सरकार पर भी इस बात का दबाव लगातार बढ़ रहा है। 2025 वह साल हो सकता है जब सरकार करोड़ों कर्मचारियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए यह ऐतिहासिक कदम उठाए।
यह लड़ाई सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि उस हक की है जो हर कर्मचारी अपनी पूरी ज़िंदगी की सेवा के बाद डिज़र्व करता है।
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