Parliament : जिनकी आबादी 2% से कम, सिर्फ उन्हें ही माना जाए अल्पसंख्यक,BJP सांसद के बयान ने छेड़ी नई बहस

Post

News India Live, Digital Desk : देश की संसद (Parliament) में इन दिनों शीतकालीन सत्र की गर्मी महसूस की जा रही है। लेकिन इस बार माहौल वक्फ बोर्ड (Waqf Board) और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर सबसे ज्यादा गर्म है। इस बीच, BJP के तेज-तर्रार सांसद Nishikant Dubey ने एक ऐसा बयान दे दिया है, जिसने सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है।

उन्होंने भरी संसद में साफ-साफ मांग कर दी है कि देश में "अल्पसंख्यक" (Minority) की परिभाषा को अब बदलने का समय आ गया है। उनका कहना है कि जो समुदाय आबादी में 18 से 20 प्रतिशत तक हो चुका है, उसे अल्पसंख्यक कहना बंद होना चाहिए।

आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि निशिकांत दुबे ने आखिर किस आधार पर यह बात कही और उनका '2% वाला फार्मूला' क्या है।

"2% से नीचे वाले ही असली हकदार"

वक्फ (संशोधन) विधेयक पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की बैठकों और चर्चाओं के बीच, निशिकांत दुबे ने तर्क दिया कि 'माइनॉरिटी' का दर्जा उन समुदायों को मिलना चाहिए जो संख्या में वास्तव में बहुत कम हैं।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा:"असली अल्पसंख्यक तो पारसी (Parsis) और जैन (Jains) समाज के लोग हैं। जिनकी आबादी 2 प्रतिशत या 1.5 प्रतिशत से भी कम है। लेकिन हम उन लोगों को अल्पसंख्यक माने बैठे हैं, जो जनसंख्या में 20 फीसदी तक हिस्सेदारी रखते हैं। यह डॉ. अंबेडकर के संविधान की भावना के खिलाफ है।"

निशिकांत दुबे का सीधा तर्क था कि अल्पसंख्यक का दर्जा 'Less than 2%' (दो फीसदी से कम) आबादी वाले समूहों तक ही सीमित होना चाहिए।

संविधान और अंबेडकर का हवाला

अपनी बात को वजन देने के लिए उन्होंने संविधान सभा की बहस (Constituent Assembly Debates) और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 (जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करते हैं) का गलत इस्तेमाल हो रहा है।

उनका कहना था कि डॉ. अंबेडकर कभी भी धर्म के आधार पर इस तरह के विशेष दर्जे के पक्ष में नहीं थे जो बड़ी आबादी को कवर करे। दुबे ने वक्फ बोर्ड के पास मौजूद बेहिसाब संपत्तियों और शक्तियों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि एक तरफ धार्मिक आधार पर भेदभाव की बात होती है और दूसरी तरफ वक्फ जैसे कानूनों के जरिए एक समुदाय को विशेष छूट दी जा रही है।

विपक्ष को क्यों लगी मिर्ची?

जाहिर सी बात है, इस बयान का निशाना सीधे तौर पर मुस्लिम (Muslim) और ईसाई (Christian) समुदाय की तरफ था, जिनकी आबादी देश में पारसी या जैन समाज की तुलना में काफी ज्यादा है। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा वक्फ बिल और अल्पसंख्यक परिभाषा के जरिए ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है।

अगर निशिकांत दुबे की यह मांग भविष्य में कानून बनती है, तो देश के करोड़ों लोगों से 'अल्पसंख्यक' का टैग छिन सकता है और उन्हें मिलने वाली सरकारी सुविधाएं सामान्य नागरिकों जैसी हो जाएंगी।

वक्फ बोर्ड पर भी तगड़ा हमला

निशिकांत दुबे ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड को दी गई असीमित शक्तियां (जैसे किसी भी जमीन को अपना बता देना) संविधान के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि हम महिलाओं और पिछड़े वर्गों के हक की बात करते हैं, तो वक्फ बोर्ड में उनका प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है?

अब जनता की बारी:
निशिकांत दुबे का यह बयान सिर्फ एक भाषण नहीं, बल्कि एक इशारा है कि सरकार की सोच किस दिशा में जा रही है। क्या आपको लगता है कि भारत में 'माइनॉरिटी' की परिभाषा बदलनी चाहिए? या फिर आबादी का आंकड़ा 2% तय करना सही होगा? संसद में तो बहस छिड़ गई है, अब चौक-चौराहों पर भी इस पर खूब चर्चा होगी!

--Advertisement--