MNREGA का नया नाम VB-GramG : सुनने में फैंसी, लेकिन झारखंड के लिए साबित होगा बेहद महंगा सौदा

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News India Live, Digital Desk : मशहूर कहावत है"नाम में क्या रखा है?" लेकिन अगर हम झारखंड की बात करें, तो नाम में पूरे 1500 करोड़ रुपये रखे हैं। चौंकिए मत, यह कोई जुमला नहीं बल्कि एक सरकारी फैसले का साइड इफ़ेक्ट है।

दरअसल, खबर है कि केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) का नाम बदलने की तैयारी कर रही है। अब इसे 'वंदे भारत ग्रामीण रोजगार गारंटी' (VB-GramG) के नाम से जाना जाएगा। सुनने में यह बदलाव सामान्य लगता है, लेकिन जमीन पर इसका असर झारखंड जैसे राज्य पर इतना भारी पड़ने वाला है कि अधिकारियों के माथे पर पसीना आ गया है।

आखिर 1500 करोड़ का खर्चा क्यों?
अब आप सोच रहे होंगे कि सिर्फ नाम ही तो बदलना है, इसमें इतना पैसा कहां जाएगा? चलिए, आपको इसका सीधा गणित समझाते हैं।

  1. करोड़ों जॉब कार्ड होंगे रद्दी: झारखंड में लाखों मनरेगा मजदूर हैं। सबके पास एक 'जॉब कार्ड' है, जिस पर बड़े अक्षरों में महात्मा गांधी नरेगा लिखा है। नाम बदलते ही ये पुराने कार्ड बेकार हो जाएंगे और नए कार्ड छापने होंगे।
  2. गांव-गांव लगे बोर्ड: झारखंड के हर गांव और पंचायत में मनरेगा योजनाओं के तहत बने कुएं, सड़कें या तालाबों के पास पक्के बोर्ड (Signboards) लगे हैं। उन सभी को या तो तोड़कर नया बनाना होगा या फिर से पेंट करवाकर नया नाम लिखवाना होगा। एक बोर्ड का खर्चा भी हजारों में होता है।
  3. सरकारी स्टेशनरी और मुहर: सरकारी दफ्तरों में मौजूद करोड़ों फाइलों, रजिस्टरों और रसीद बुकों पर पुराना नाम है। वो सब कचरा हो जाएंगी। नई स्टेशनरी, नई मुहरें और नई रसीदें बनवानी पड़ेंगी।

रिपोर्ट्स का अनुमान है कि झारखंड में इस पूरी प्रक्रिया में करीब 1500 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह एक बहुत बड़ी रकम है।

गरीब राज्य पर दोहरी मार
झारखंड आर्थिक रूप से एक पिछड़ा राज्य है। वहां 1500 करोड़ रुपये से कई नई सड़कें बन सकती थीं या लाखों मजदूरों की कई दिनों की दिहाड़ी दी जा सकती थी। अधिकारियों का मानना है कि यह "गैर-जरूरी खर्च" राज्य के विकास फंड पर कैंची चला देगा।

सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई किसी योजना का नाम बदलना इतना जरूरी है कि उसके लिए अरबों रुपये स्वाहा कर दिए जाएं? क्या इन पैसों का इस्तेमाल मजदूरों को बेहतर सुविधाएं देने में नहीं किया जा सकता था?

यह फैसला कब से पूरी तरह लागू होगा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन झारखंड के खजाने पर पड़ने वाला यह बोझ चर्चा का विषय जरूर बन गया है।

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