"मेरी सास बेकसूर है..." जब बहू के खिलाफ पड़ोसी ने दी गवाही, तो सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया पूरा केस

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सास-बहू के झगड़े और दहेज प्रताड़ना के मामले अक्सर हमारे समाज में सुनने को मिलते हैं, और ज़्यादातर मामलों में गलती ससुराल वालों की ही मानी जाती है। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो यह बताता है कि हर कहानी के दो पहलू होते हैं।

यह कहानी एक ऐसी सास की है, जिसे अपनी ही बहू पर अत्याचार करने के आरोप में निचली अदालतों ने दोषी ठहरा दिया था। मामला जब देश की सबसे बड़ी अदालत, यानी सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा, तो एक पड़ोसी 'फरिश्ता' बनकर सामने आया और उसकी गवाही ने इस पूरे केस का रुख ही मोड़ दिया।

क्या था यह पूरा मामला?

एक महिला (बहू) ने अपनी सास के खिलाफ दहेज प्रताड़ना और क्रूरता का गंभीर आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया था। परिवार के सदस्यों और बाकी गवाहों के बयानों के आधार पर निचली अदालतों ने सास को दोषी मान लिया था।

लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, तो जजों ने एक ऐसे गवाह के बयान पर गौर किया, जिसे अब तक नज़रअंदाज़ किया जा रहा था - वह था उस परिवार का एक पड़ोसी!

पड़ोसी ने बताई घर की असली कहानी

उस पड़ोसी ने कोर्ट में जो गवाही दी, वह बहू के आरोपों से बिल्कुल अलग थी। उसने बताया कि वह सालों से उस परिवार के बगल में रह रहा है और उसने कभी भी सास को अपनी बहू के साथ कोई बुरा बर्ताव करते नहीं देखा। बल्कि, उसने तो हमेशा सास को अपनी बहू का ख्याल रखते हुए ही देखा था।

क्यों मानी गई पड़ोसी की बात?

सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि पारिवारिक झगड़ों में घर के सदस्य अक्सर एक-दूसरे के पक्ष या विपक्ष में झुके हुए हो सकते हैं, और उनकी गवाही में पक्षपात हो सकता हैं। लेकिन एक पड़ोसी, जिसका परिवार से कोई सीधा रिश्ता नहीं होता, उसकी गवाही ज़्यादा निष्पक्ष और भरोसेमंद मानी जा सकती हैं।

पड़ोसी की इसी सच्ची और निष्पक्ष गवाही को आधार मानते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सास के खिलाफ लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया और उसे बाइज्जत बरी कर दिया।

यह फैसला इस बात की मिसाल है कि सच की हमेशा जीत होती है, भले ही उसमें थोड़ी देर क्यों न हो जाए।

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