Maldives Economic Crisis : चीन से यारी पड़ी भारी ,मालदीव कंगाल होने की कगार पर, भारत ने बढ़ाया मदद का हाथ

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News India Live, Digital Desk: Maldives Economic Crisis : मालदीव, भारत के पड़ोस में हिंद महासागर का वो ख़ूबसूरत देश, जो कभी अपने शानदार नज़ारों और स्वच्छ समुद्री किनारों के लिए जाना जाता था, आज गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. ऐसा लग रहा है कि चीन से भारी-भरकम कर्ज लेने की मालदीव की आदत अब उसे भारी पड़ रही है और वह लगभग दिवालिया होने की कगार पर पहुँच गया है. ऐसे मुश्किल वक़्त में एक बार फिर भारत उसके लिए सहारा बनकर सामने आया है और एक जीवन रेखा दे रहा है.

राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के आने के बाद से मालदीव की नीतियां चीन की ओर ज़्यादा झुकी हुई दिख रही थीं, लेकिन अब चीन से लिया गया बेहिसाब कर्ज उनके लिए बड़ी मुसीबत बन गया है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन मालदीव का सबसे बड़ा कर्जदाता है, और उस पर चीन का 1.3 अरब डॉलर से भी ज़्यादा का कर्ज चढ़ा हुआ है. कुल मिलाकर मालदीव का बाहरी कर्ज 3.4 अरब डॉलर तक पहुँच गया है, और उसका कुल सार्वजनिक कर्ज जीडीपी के 122.9% के बराबर, करीब 8 अरब डॉलर हो चुका है. आलम यह है कि मालदीव के पास उपयोग करने लायक विदेशी मुद्रा भंडार (usable foreign exchange reserves) सिर्फ 1.88 करोड़ डॉलर ही बचा है. इस छोटी सी रकम से वो मुश्किल से एक महीने का आयात कर पाएगा. आने वाले कुछ सालों में मालदीव को बड़े पैमाने पर कर्ज चुकाना है; 2025 में उसे करीब 600 मिलियन डॉलर और 2026 में 1 बिलियन डॉलर चुकाने हैं.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी मालदीव को अपने तेज़ी से बढ़ते कर्ज को लेकर आगाह किया है और उसे 'उच्च जोखिम' की श्रेणी में डाल दिया है. IMF और वर्ल्ड बैंक, दोनों ने ही मालदीव को सलाह दी है कि वह अपनी वित्तीय लागत कम करने और बाहरी कर्ज के जोखिम को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए जल्द से जल्द आर्थिक सुधार लागू करे.

भारत बना 'संजीवनी'

ऐसे गंभीर हालात में भारत ने एक बार फिर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. भारत ने मालदीव को 5 करोड़ डॉलर के ट्रेजरी बिल की वापसी की समय सीमा एक साल के लिए बढ़ा दी है और खास बात ये है कि इस पर कोई ब्याज भी नहीं लगेगा. भारत मार्च 2019 से लगातार मालदीव को इस तरह की ब्याज-मुक्त वित्तीय सहायता देता रहा है.

हाल ही में, अक्टूबर 2024 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के बीच हुई बातचीत में भारत ने मालदीव को 6,300 करोड़ रुपये (लगभग 750 मिलियन डॉलर) से अधिक की वित्तीय मदद देने पर सहमति जताई है. इसमें 400 मिलियन डॉलर का करेंसी स्वैप एग्रीमेंट और 100 मिलियन डॉलर के ट्रेजरी बिल का रोलओवर भी शामिल है. ये सहायता मालदीव के विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में बेहद मददगार होगी. मुइज्जू, जिन्होंने कभी "इंडिया आउट" अभियान का समर्थन किया था, अब भारत के साथ रिश्तों को प्राथमिकता देने की बात कह रहे हैं.

चीन के कर्ज का जाल (Debt Trap) और मालदीव पर असर

कई एक्सपर्ट्स मानते हैं कि चीन की "कर्ज जाल कूटनीति" (Debt-trap diplomacy) मालदीव के इस संकट का एक बड़ा कारण है. चीन ऐसे छोटे देशों को बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (infrastructure projects) के लिए भारी कर्ज देता है, जिनके बारे में अक्सर पता होता है कि वे उसे चुका नहीं पाएंगे. जब वे देश कर्ज नहीं चुका पाते, तो चीन उन रणनीतिक संपत्तियों (strategic assets) पर नियंत्रण कर लेता है. श्रीलंका इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जो चीनी कर्ज के चलते बड़े आर्थिक संकट में फंसा और उसे अपने हम्बनटोटा बंदरगाह को चीन को 99 साल की लीज पर देना पड़ा. मालदीव भी इसी तरह चीन के जाल में फंसा दिख रहा है, जहाँ चीन ने मालदीव के पुल, बंदरगाह और हवाई अड्डों जैसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया है, जो उसके अपने रणनीतिक हितों के लिए ज़रूरी हैं.

मालदीव की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर करती है. कोविड-19 महामारी और हाल ही में भारतीय पर्यटकों की संख्या में आई कमी ने भी इसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर किया है. इससे पहले मालदीव को डॉलर की कमी के चलते विदेशी मुद्रा लेन-देन पर भी पाबंदियां लगानी पड़ी थीं.

यह परिस्थिति दर्शाती है कि भले ही राजनीतिक संबंध ऊपर-नीचे हों, एक पड़ोसी होने के नाते भारत हमेशा मालदीव के साथ खड़ा रहा है और उसे आर्थिक स्थिरता में मदद करने के लिए तैयार है.

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