Lucknow Mayor vs Commissioner : लखनऊ नगर निगम में छिड़ी अधिकारों की जंग, कुर्सी पर संकट किसका?
News India Live, Digital Desk : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नगर निगम में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। शहर के दो सबसे बड़े और ताकतवर पद, यानी महापौर (Mayor) और नगर आयुक्त (Municipal Commissioner) के बीच खींचतान और तल्खी इस कदर बढ़ गई है कि इसका सीधा असर शहर के कामकाज पर पड़ने लगा है। एक तरफ हैं जनता द्वारा चुनी गईं मेयर सुषमा खर्कवाल, तो दूसरी तरफ हैं प्रशासन के मुखिया नगर आयुक्त गौरव कुमार। दोनों के बीच 'अधिकारों की जंग' अब खुलकर सामने आ गई है।
यह टकराव दो बड़े मामलों को लेकर अपने चरम पर है।
मामला 1: जब मेयर के आदेश को कमिश्नर ने 'हल्के में' लिया
हाल ही में मेयर सुषमा खर्कवाल ने सीएंडडीएस जलकल विभाग के कामों की समीक्षा के लिए एक बैठक बुलाई थी। इस महत्वपूर्ण बैठक से विभाग के मुख्य अभियंता (Chief Engineer) नदारद रहे। इस पर मेयर का पारा चढ़ गया और उन्होंने इसे अनुशासनहीनता मानते हुए अफसर के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
लेकिन, नगर आयुक्त गौरव कुमार ने इस पर कोई बड़ी कार्रवाई करने की बजाय, संबंधित अफसर को सिर्फ एक 'चेतावनी पत्र' (Warning Letter) जारी करके मामला रफा-दफा करने की कोशिश की।
इस 'हल्की' कार्रवाई से मेयर और भी नाराज हो गईं। उन्होंने एक बार फिर कमिश्नर को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जताई है और पूछा है कि उनके स्पष्ट निर्देशों के बावजूद सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की गई। यह घटना सीधे तौर पर मेयर के अधिकार को चुनौती देने जैसी है।
मामला 2: बजट पर 'प्रशासनिक ब्रेक'
दूसरा और शायद इससे भी बड़ा टकराव बजट को लेकर है। नगर निगम सदन (House), जिसकी मुखिया मेयर होती हैं, ने हाल ही में शहर का बजट पास किया था। नियम के अनुसार, इस पास किए गए बजट को मंजूरी के लिए शासन (सरकार) के पास भेजा जाना था।
लेकिन, नगर आयुक्त गौरव कुमार ने सदन द्वारा पास किए गए इस बजट को सीधे शासन को भेजने से इनकार कर दिया है। उनका तर्क है कि बजट के कुछ प्रस्ताव वित्तीय नियमों के खिलाफ हैं। इसलिए, वह बजट के साथ अपनी आपत्तियां और टिप्पणियां भी लिखकर भेजेंगे।
मेयर और पार्षदों का खेमा इसे 'सदन की सर्वोच्चता का अपमान' मान रहा है। उनका कहना है कि जब जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों ने सदन में बहुमत से बजट पास कर दिया है, तो एक अफसर को उसे रोकने या उस पर अपनी टिप्पणी लगाकर भेजने का कोई अधिकार नहीं है।
क्या होगा आगे?
लखनऊ नगर निगम में मेयर (राजनीतिक विंग) और नगर आयुक्त (प्रशासनिक विंग) के बीच यह टकराव अब खुलकर सतह पर आ गया है। इस 'कोल्ड वॉर' का नतीजा यह है कि कई महत्वपूर्ण फैसले अटके पड़े हैं और शहर के विकास कार्यों की गति धीमी पड़ने का खतरा पैदा हो गया है। अब सबकी निगाहें शासन पर टिकी हैं कि वह इस 'अधिकारों की जंग' में किसका पक्ष लेता है और लखनऊ की सरकार को पटरी पर लाने के लिए क्या कदम उठाता है।
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