Kisan Diwas Special : पीएम तो बने, लेकिन संसद में एक दिन भी क्यों नहीं बैठ पाए चौधरी चरण सिंह?
News India Live, Digital Desk: आज 23 दिसंबर है, जिसे पूरा देश 'किसान दिवस' (Kisan Diwas) के रूप में मनाता है। यह दिन समर्पित है भारत के 5वें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) को, जिनकी आज जयंती है।
वैसे तो भारतीय राजनीति में कई प्रधानमंत्री आए और गए, लेकिन चौधरी साहब का नाम इतिहास के पन्नों में एक बहुत ही अजीब और अनोखे कारण से दर्ज है।
अक्सर जीके (GK) के सवालों में या दोस्तों के बीच चर्चा में यह पूछा जाता है "वो कौन सा प्रधानमंत्री था जिसने अपने कार्यकाल में कभी संसद (Parliament) का सामना नहीं किया?"
जवाब है चौधरी चरण सिंह। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों हुआ? क्या वे संसद जाने से डरते थे? जी नहीं, असली कहानी तो 'सियासत' की है। आइए, आसान भाषा में उस दौर के पन्ने पलटते हैं।
कैसे बने थे प्रधानमंत्री?
बात 1979 की है। उस समय मोरारजी देसाई की सरकार गिर चुकी थी। सियासी घमासान के बीच चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस (आई) के बाहरी समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया और प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। वह दिन किसानों के लिए किसी त्यौहार से कम नहीं था क्योंकि उनका एक अपना नेता देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठा था।
वो समर्थन जो कभी काम नहीं आया
चौधरी चरण सिंह पीएम तो बन गए, लेकिन उनकी सरकार को संसद में अपना बहुमत (Trust Vote) साबित करना बाकी था। राष्ट्रपति ने उन्हें बहुमत सिद्ध करने के लिए कुछ हफ़्तों का समय दिया। संसद का सत्र बुलाने की तारीख तय हुई।
लेकिन, राजनीति में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कोई नहीं जानता। ठीक विश्वास मत (Trust Vote) के दिन से एक दिन पहले, इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया।
समझौता नहीं, इस्तीफा मंजूर!
अब चौधरी साहब के पास दो रास्ते थे— या तो वे जोड़-तोड़ करके सरकार बचाने की कोशिश करते, या फिर कुर्सी छोड़ देते। लेकिन वे वसूलों के पक्के इंसान थे। उन्हें पता था कि बिना समर्थन के वे संसद में बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे।
इसलिए, संसद के सत्र में जाकर हारने के बजाय, उन्होंने सदन का सामना करने से पहले ही राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा (Resignation) सौंप दिया। इस तरह, वह भारत के इतिहास के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री बन गए जो पीएम रहते हुए कभी लोकसभा में नहीं गए। उनका कार्यकाल लगभग 5-6 महीने (170 दिन) का रहा, और इस दौरान संसद का कोई सत्र नहीं चला था।
किसानों के असली मसीहा
भले ही उनका कार्यकाल छोटा रहा हो, और उन्होंने संसद का सामना न किया हो, लेकिन उन्होंने हमेशा 'सड़क से संसद' तक किसानों की आवाज बुलंद की। उनका कहना था, "देश की खुशहाली का रास्ता खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है।" उनका सादा जीवन और धोती-कुर्ता वाला पहनावा आज भी भारतीय राजनीति में सादगी की मिसाल है।
तो अगली बार जब कोई यह सवाल पूछे, तो आप गर्व से बता सकते हैं कि वे संसद से डरे नहीं थे, बल्कि उन्होंने स्वाभिमान को कुर्सी से ऊपर चुना था।
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