Keshav Prasad Maurya Return : 14 साल का वनवास खत्म केशव की वापसी ने हिला दी यूपी की सियासत

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News India Live, Digital Desk : भारतीय राजनीति में, खासकर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Politics) में, रामायण के प्रसंगों का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। ‘14 साल का वनवास’ यह शब्द सुनते ही जहन में भगवान राम का त्याग आता है, लेकिन आज कल यूपी के सियासी गलियारों में इसका मतलब कुछ और ही निकाला जा रहा है। खबर बड़ी है केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) का 14 साल पुराना एक चक्र पूरा हो गया है और बीजेपी ने एक बार फिर उन्हें कमान सौंप दी है।

लेकिन रुकिए, सिर्फ खबर जान लेना काफी नहीं है। हमें यह समझना होगा कि आखिर बीजेपी ने अपने इस पुराने सेनापति पर फिर से भरोसा क्यों जताया है और इसके पीछे की 'इनसाइड स्टोरी' क्या है?

1. 2017 वाला जादू और वो जीत
अगर आप थोड़ा पीछे जाएं और 2017 के चुनाव को याद करें, तो आपको याद आएगा कि उस वक्त केशव प्रसाद मौर्य ही थे जिन्होंने बतौर प्रदेश अध्यक्ष (State President) यूपी में बीजेपी के लिए जमीन तैयार की थी। उनकी मेहनत और रणनीति का ही नतीजा था कि बीजेपी ने ऐसी ऐतिहासिक जीत दर्ज की, जिसने सबको चौंका दिया था। उस समय उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। अब जब पार्टी उन्हें वापस उसी भूमिका में लाई है, तो संदेश साफ़ है—बीजेपी को वही पुराना आक्रामक अंदाज और 'जीत की गारंटी' चाहिए।

2. 14 साल के 'वनवास' का क्या है गणित?
राजनीतिक पंडित इस वापसी को '14 साल के वनवास' का अंत कह रहे हैं। दरअसल, राजनीति में समय का पहिया घूमता रहता है। केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया है। यह 'वनवास' सत्ता से दूरी का नहीं, बल्कि उस 'पूर्ण अधिकार' का था जिसके वे हकदार माने जाते थे। अब जब उन्हें फिर से कमान मिली है, तो यह उनके समर्थकों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है। यह उनकी निष्ठा का फल माना जा रहा है।

3. ओबीसी वोट बैंक और सोशल इंजीनियरिंग
केशव प्रसाद मौर्य की वापसी सिर्फ एक पद बदलना नहीं है, बल्कि यह एक बहुत बड़ी 'सोशल इंजीनियरिंग' (Social Engineering) का हिस्सा है। केशव मौर्य पिछड़े वर्ग (OBC) का एक बहुत बड़ा चेहरा हैं। यूपी की राजनीति में जिसने ओबीसी वोट साध लिया, समझो कुर्सी उसके पास। विपक्ष लगातार जातिगत जनगणना और पीडीए (PDA) की बातें कर रहा है, ऐसे में बीजेपी ने केशव रूपी 'तुरुप का इक्का' चलकर विरोधियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

4. संगठन में नई जान फूंकने की तैयारी
अक्सर देखा जाता है कि जब कोई नेता लंबे समय तक सत्ता में रहता है, तो संगठन (Organization) और कार्यकर्ताओं के बीच थोड़ी दूरी आ जाती है। केशव प्रसाद मौर्य को संगठन का आदमी माना जाता है। वे कार्यकर्ताओं की नब्ज पहचानते हैं। उनके आने से जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में जो जोश 2017 में था, उसे दोबारा जगाने की कोशिश की जा रही है। वो एक ऐसे नेता हैं जो एसी कमरों से ज्यादा जनता के बीच पसीना बहाने में विश्वास रखते हैं।

5. 2027 का रोडमैप तैयार?
यह बदलाव सिर्फ आज के लिए नहीं है, बल्कि नजरें 2027 के विधानसभा चुनावों पर भी हैं। बीजेपी अभी से अपनी किलेबंदी मजबूत करना चाहती है। केशव प्रसाद मौर्य का आक्रामक तेवर और उनकी सांगठनिक क्षमता पार्टी को वो धार देगी जिसकी उसे आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरत है।

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